Hindi, asked by pari360, 6 hours ago

नि म्नलि खि त काव्यांशों को ध्यानपर्व



कर्व पढ़कर उन पर आधारि त प्रश्नों

केउत्तर दें

अभी न होगा मेरा अतं

अभी-अभी ही तो आया है

मेरे वन में मदृ





वसतं

अभी न होगा मेरा अतं ।

हरे-हरे ये पात,

डालि याँ, कलि याँ, कोमल गात।मैंही अपना स्वप्न-मदृ



ु -कर

फेरूँगा नि द्रि त कलि यों पर

जगा एक प्रत्यष



मनोहर।

1. कवि पष्


प-पष्


प से क्या खींच लेना चाहता है?

2. कवि खि ले फ



लों को कहाँ का द्वार दि खाना चाहता?

3. कवि पष्



पों को अनतं तक वि स्ततृ

करने के लि ए उन्हें कि ससे सींचने

की बात कर रहा है?

4. कवि ता में कलि याँ कि सके प्रतीक के रूप में आई हैं?

5. इस काव्यांश के कवि का नाम है।

6. कवि कि स तरह की कलि यों पर अपना हाथ फेरना चाहता है?​

Answers

Answered by raniyaunnikrishnan
2

Explanation:

नि म्नलि खि त काव्यांशों को ध्यानपर्व

कर्व पढ़कर उन पर आधारि त प्रश्नों

केउत्तर दें

अभी न होगा मेरा अतं

अभी-अभी ही तो आया है

मेरे वन में मदृ

वसतं

अभी न होगा मेरा अतं ।

हरे-हरे ये पात,

डालि याँ, कलि याँ, कोमल गात।मैंही अपना स्वप्न-मदृ

ु -कर

फेरूँगा नि द्रि त कलि यों पर

जगा एक प्रत्यष

मनोहर।

1. कवि पष्

प-पष्

प से क्या खींच लेना चाहता है

2. कवि खि ले फ

लों को कहाँ का द्वार दि खाना चाहता

3. कवि पष्

पों को अनतं तक वि स्ततृ

करने के लि ए उन्हें कि ससे सींचने

की बात कर रहा है?

4. कवि ता में कलि याँ कि सके प्रतीक के रूप में आई हैं

5. इस काव्यांश के कवि का नाम है।

6. कवि कि स तरह की कलि यों पर अपना हाथ फेरना चाहता हहै

ans:मनोहर।

Answered by GraceS
0

ʕ•ﻌ•ʔ\huge\bold\pink{hello!!!}ʕ•ﻌ•ʔ

HERE IS UR ANSWER

_____________________

  • सूर्यकांत त्रिपाठी निराला इस कविता में वसंत ऋतु की शुरुआत में जो माहौल होता है उसकी चर्चा की गई है।

  • (i) रेशम जैसी

(ii) हँसती खिलती

(iii) सोने के तारों जैसी

(iv) उपर्युक्त सभी

  • आज जीत की रात

पहरुए, सावधान रहना।

खुले देश के द्वार

अचल दीपक समान रहना

प्रथम चरण है नये स्वर्ग का

है मंजिले का छोर

इस जन-मंथन से उठ आई

पहली रतन हिलोर

अभी शेष है पूरी होना

जीवन मुक्ता डोर

क्योंकि नहीं मिट पाई दुख की

विगत साँवली कोर

ले युग की पतवार

बने अंबुधि समान रहना

पहरुए, सावधान रहना

ऊँची हुई मशाल हमारी

आगे कठिन डगर है।

शत्रु हट गया, लेकिन उसकी

छायाओं का डर है,

शोषण से मृत है समाज ,

कमज़ोर हमारा घर है।

किंतु आ रही नई जिंदगी

यह विश्वास अमर है।

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