निम्नलिखित में अलंकार बताइए।
1. दुख है जीवन तरु के फूल।
2. निर्धन के धन-सी तुम आई।
10. तुमने अनजाने वह पीड़ा छवि के सर से दूर भगा दी।
11. सिर फट गया उसका वहीं मानो अरुण रंग का घड़ा।
5. मधुर मधु मंजुल मुख मुस्क्यान।
लिखन बैठी जाकी छवी, गहि-गहि गरब गरूर।
12. माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि इवै पड्त।
13. वह दीपशिखा-सी शांत भाव में लीन।पमा
यन
14. वह मुरली की धुनि कानि परें, कुल कानि हियो तजि
भए न केते जगत के, चतुर चितेरे कूर।
भाजति है।
हो भ्रष्ट शील के से शतदल।
15. पदमावती सब सखी बुलाई। जन फुलवारी सबै चलि आई।
भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका,
बहुत
काली सिल, जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल
गई हो।
16. ठगे गए सब बेरहमी से, मन-उपवन, सारा तन-कंचन।
17. हरिपद कोमल कमल से।
वह ज़िंदगी क्या जिंदगी जो सिर्फ पानी सी बही।
18. मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों।
19. तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।
घर में, हृदय में, गाँव में तरु में तथैव तडाग में।
कालिंदी-कूल-कदंब की डारन।
डानुसारस
20. मिटा मोदु मन भए मलीने। विधि निधि दीन्ह लेत जनु छीन्हे
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निम्नलिखित में अलंकार बताइए। त भाव में लीन।पमा
यन
14. वह मुरली की धुनि कानि परें, कुल कानि हियो तजि
भए न केते जगत के, चतुर चितेरे कूर।
भाजति है।
हो भ्रष्ट शील के से शतदल।
15. पदमावती सब सखी बुलाई। जन फुलवारी सबै चलि आई।
भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका,
बहुत
काली सिल, जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल
गई हो।
16. ठगे गए सब बेरहमी से, मन-उपवन, सारा तन-कंचन।
17. हरिपद कोमल कमल से।
वह ज़िंदगी क्या जिंदगी जो सिर्फ पानी सी बही।
18. मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों।
19. तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।
घर में, हृदय में, गाँव में तरु में तथैव तडाग में।
कालिंदी-कूल-कदंब की डारन।
डानुसारस
20. मिटा मोदु मन भए मलीने। विधि निधि दीन्ह लेत जनु छीन्हे
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