निम्नलिखित में कौन मानव और पर्यावरण के बीच उन्होंने kiriya की सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक है
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मानव और जीवमंडल के अंतर्संबंधों का कालिक पक्ष विविधतापूर्ण है। मनुष्य के अभ्युदय से लेकर आज तक की घटनाएं इंगित करती हैं कि इस सृष्टि के रचयिता ने संघर्ष टालने के उद्देश्य से सर्वाधिक जैविक गुण मानव में आरोपीत कर उसे सर्वश्रेष्ठ जीव बनाने का मार्ग प्रशस्त किया है। यही कारण है कि मानव पर्यावरण का घटक और कारक बन गया। उसने अपनी पौरुष, ज्ञान-विज्ञान, तकनीकी, उद्यम और कल्पना शक्ति के बल पर भौतिक परिवेश के साथ सांस्कृतिक परिवेश का निर्माण किया है।
यह सांस्कृतिक भू-दृश्य की रचना क्रमिक विज्ञान को इंगित करता है। आखेट युग की तुलना में पशु-पालन का सांस्कृतिक स्वरूप भिन्न था। इसी प्रकार कृषि-युग की तुलना में प्रद्योगिकी युग ने एक नए मोड़ पर खड़ा कर दिया है। झोपड़ी घर और अटट्लिकाएं आवसीय उन्नति की प्रतीक हैं।
आज जो समाज झोपड़ी से आगे नहीं बढ़ पाया है, उसे पिछड़ा, जो घर बनाकर कृषि व पशु-पालन करता है वह अर्ध विकसित तथा जो वस्तु निर्माण कर अटट्लिकाओं में रहता है, वह विकसित समाज कहलाता है। इन तीनों मानव-समाजों का संबंध प्रकृति के साथ सामान नहीं है।
पिछड़ा समाज प्रकृतिवादी है। उसकी आवश्यकताएं उतनी हीं है, जितनी उसके परिवेश से पूरी हो सके, लेकिन अर्ध विकसित समाज प्रकृति को रिझाकर कुछ अधिक प्राप्त कर लेता है। इनकी तुलना में विकसित मानव प्रकृति से छिना-झपटी कर अपनी असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। वह इतना संवेदनशील हो गया है कि प्रकृति उसके लिए उपभोग की वस्तु बन गई है। इसी अवधारणा में चलते आज मानव के सामने अपना ही अस्तित्व बचाने का प्रश्न आ खड़ा हुआ है जो आगे चलकर कर गंभीर समस्या का रूप धारण करता जाएगा।
2. मानव और जीवमंडल अंतर्क्रिया का स्थानिक पक्ष
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