Business Studies, asked by Russy500, 11 months ago

निम्नलिखित में से कौन-सा सामाजिक पर्यावरण का उदाहरण है?
(क)अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति
(ख) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम
(ग) देश की संरचना
(घ) परिवार का गठन I

Answers

Answered by AvaneeshVBiradarAVBI
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धारा 1 : संक्षिप्त नाम, विस्तार, प्रारम्भ और लागू होना-

भारतीय संसद द्वारा विनियमित इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 है, जिसकी अधिकारिकता जम्मू-कश्मीर को छोड कर समस्त भारतवर्ष है। केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित तिथि के उपंरात यथा उपरोक्त यह अधिनियम सम्पूर्ण भारत वर्ष में प्रभावी है।

धारा 2 : परिभाषाएं- अधिनियम के अन्तर्गत निम्नवत परिभाषाएं उल्लेखित है :

1 समुचित प्रयोगशाला से अभिप्राय केन्द्रीय सरकार अथवा राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला से है।

2 शाखा कार्यालय का तात्पर्य विपरीत पक्ष द्वारा शाखा के रूप में वर्णित संस्थान से है।

3 परिवादी से तात्पर्य उपभोक्ता अथवा केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार से अभिप्रेत तथा समान हित वाले बहुसंख्यक उपभोक्ताओं में से एक या अधिक उपभोक्तागण से है। उपभोक्ता की मृत्यु की दशा में उसका कानूनी शिकायत करने व कोई अनुतोष प्राप्त करने की दृष्टि से लिखित में प्रस्तुत किया गया शिकायती पत्र, जो निम्नलिखित से सम्बधित होगा :

(अ) जब किसी व्यापारी अथवा सेवा प्रदाता द्वारा अनुचित व्यापारिक व्यवहार किया गया हों।

(ब) क्रय किये गये अथवा क्रय के लिए सहमत माल में त्रुटियां आना।

(स) क्र्रय किये गये पदार्थ अथवा भाड़ें पर लिये गई सेवाओं में किसी प्रकार की कमी।

(द) किसी व्यापारी अथवा सेवा प्रदाता द्वारा माल या सेवाओं में अधिक कीमत ली गई हो।

(ध) किसी भी माल अथवा पदार्थ का निर्धारित मानक के उल्लघंन की स्थिति में तथा जीवन और सुरक्षा के लिए परिसंकट में होने की स्थिति में जो जीवन और सुरक्षा के लिए हानिकारक है।

5 उपभोक्ता से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जिसने किसी भी वस्तु पदार्थ तथा सेवा को प्राप्त करने के लिए भुगतान किया हो अथवा अशतः भुगतान किया हो या भुगतान करने का वचन दिया हो। उपभोक्ता का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से भी है, जो सेवाओं का भाडे पर लेता है या उपयोग करता है। प्रतिबंध यह हैं कि वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए सेवाऐं लेनेवाला व्यक्ति उपभोक्ता की श्रेणी में नही आता है। किन्तु स्वनियोजन द्वारा अपनी जीविका उपार्जन के प्रयोजनों के लिए ली गई सेवाऐं अथवा क्र्रय कि गई वस्तुएं इससे भिन्न सम>ी जायेंगी।

6 त्रुटि से तात्पर्य गुणवत्ता, मात्र माप-तोल, शुद्धता अथवा मानक आदि में कोई दोष, कमी अथवा अपूर्णता आना है।

7 जिला पीठ से तात्पर्य जिला उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय से है।

8 सहकारी सोसायटी से तात्पर्य सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1860 के अधीन रजिस्टर्ड संस्था है।

9 सेवा से तात्पर्य प्रयोगकर्ता को उपलब्ध कराई गई सेवा तथा सुविधाओं का प्रबधं भी है। भुगतान करने पर प्राप्त होती है। किन्तु इसके अन्तर्गत निशुल्क अथवा व्यक्तिगत सेवाऐं नही आती।

10 अनुचित व्यापारिक व्यवहार किसी माल की बिक्री, प्रयोग या आपूर्ति अथवा सेवाओं को प्रदान करने में अनुचित आचरण एवं व्यवहार से है।

धारा 3- अधिनियम का किसी अन्य विधि के अल्पीकरण में न होना : तात्पर्य यह है इस अधिनियम की व्यवस्था वर्तमान में अन्य विधि की व्यवस्थाओं की अतिरिक्त व्यवस्था के रूप में होगें अर्थात सम्बंधित अधिनियमों में अनुुतोष उपलब्ध होने की स्थिति में भी इस अधिनियम की व्यवस्थाओं का उपयोग किया जा सकता है।

धारा 4- केन्द्रीय उपभोक्ता परिषद का गठन : अधिनियम की व्यवस्था के अनुसार उपभोक्ता मामलों के मंत्री की अध्यक्षता में एक केन्द्रीय परिषद का गठन किया जायेगा जिसमें सरकारी व गैर सरकारी सदस्य प्रतिनिधि होगें।

धारा 5- केन्द्रीय परिषद की प्रक्रिया : केन्द्रीय परिषद की बैठक वर्ष में कम से कम एक बार अवश्य होगी तथा अध्यक्ष के विवेकानुसार बैठक निर्धारित स्थान व समय पर निश्चित किये गये एजेंडे पर होगी।

धारा 6- केन्द्रीय परिषद के उद्धेश्य : (क) जीवन एवं सम्पति को हानि पहुँचाने वाले माल, पदार्थ एवं सेवाओं से सम्बंधित अधिकारों के प्रति सुरक्षा।

(ख) उपभोक्ताओं को पदार्थ की गुणवत्ता, मात्र, शुद्धता, मानक एवं मूल्य के प्रति संरक्षण सुनिश्चित करना तथा अनुचित व्यापारिक व्यवहार से सुरक्षा।

(ग) प्रतियोगी मूल्यों पर वस्तुओं को उपलब्ध कराने की व्यवस्था।

(घ) उचित फोरम पर उपभोक्ताओं के हितों का सरंक्षण।

(च) अनुचित व्यापारिक व्यवहार एवं उपभोक्ताओं के उत्पीडन से सम्बंधित प्रतितोष दिलाना।

धारा 7- राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद : प्रत्येक राज्य में उपभोक्ता मामलों के मंत्री की अध्यक्षता में एक राज्य कांउसिल का गठन किया जायेगा जिसमें परिषद राज्य सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार वर्ष में कम से कम दो बार अवश्य बैठक करेगी।

धारा 8- राज्य परिषद के उद्धेश्य - उपरोक्तलिखित केन्द्रीय परिषद की भांति राज्य परिषद का उद्धेश्य भी राज्य के क्षेत्र में उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण करना होगा।

धारा 8i - प्रत्येक जनपद में जिला कलेक्ट्रर की अध्यक्षता में परिषद का गठन राज्य सरकार द्वारा किया जायेगा जिसमें अन्य सरकारी एवं गैर सरकारी सदस्य होगें तथा परिषद की बैठक राज्य सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार होगी।

धारा 8ii - जिला उपभोक्ता परिषद के उद्धेश्य : केन्द्रीय एवं राज्य परिषद की भांति जनपद की सीमा क्षेत्र में उपभोक्ताओं के हितो का सरंक्षण, इस परिषद द्वारा सुनिशि्ंचत किया जायेगा।

धारा 9- जिला उपभोक्ता फोरम का गठन : प्रत्येक जनपद में राज्य सरकार द्वारा एक या अधिक जिला फोरम का गठन किया जायेगा।

Answered by akshayj976
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Answer:

क) अर्थवयवस्था मे धन की आपूर्ति

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