निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं तीन के उत्तर लिखिए I
(क) 'कारतूस' नामक पाठ के आधार पर सआदत अली का परिचय दीजिए I
(ख) 'गिन्नी का सोना' नामक प्रसंग के आधार पर गांधी जी की आदर्शवादिता के बारे में बताइए I
(ग) अरब में लश्कर को नूह के नाम से क्यों याद करते हैं ?
(घ) 26 जनवरी, 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए क्या - क्या तैयारियाँ की गई ?
Answers
(क)
‘कारतूस’ नामक पाठ में सआदत अली अवध के नवाब आसिफउद्दौला का भाई था। कहने को तो वह आसिफउद्दौला का भाई था, लेकिन अपने भाई का ही दुश्मन जैसा था। वह अपने भाई के राज्य पर बुरी नियत रखता था। आसिफउद्दौला जब तक कोई संतान नहीं थी तो सआदत अली को उम्मीद थी कि आसिफउद्दौला के बाद वो ही अवध की गद्दी पर बैठेगा। लेकिन वजीर अली के जन्म लेने से उसकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया। वह अपने भतीजे वजीर अली को अपना दुश्मन समझने लगा था। सआदत अली एक लालची एवं स्वार्थी व्यक्ति था, जो अवध की गद्दी पर बैठने के लालच में अपने भाई एवं भतीजे के खिलाफ अंग्रेजों से मिल गया।
(ख)
गांधीजी एक पूर्ण आदर्शवादी व्यक्ति थे। ‘गिन्नी का सोना’ पाठ के आधार पर देखें तो सोने में तांबे की मिलावट करने से अर्थात आदर्शों में व्यवहारिकता की मिलावट से आदर्श मजबूत हो जाते हैं। लेकिन गांधीजी पूर्ण आदर्शवादी थे, वे तांबे में सोने की मिलावट करते थे। वे व्यवहारिकता में आदर्शों की मिलावट करते थे। उनके जीवन में आदर्शों के लिए सबसे पहला स्थान था, लेकिन वह व्यवहारिकता के महत्व को भी पहचानते थे और इसीलिए व्यवहारिकता में आदर्शों की मिलावट करते थे। इस कारण लोगों ने प्रैक्टिकल ऑडियोलॉजिस्ट कहते थे।
(ग)
अरब में एक बार लश्कर ने एक कुत्ते को दुत्कार दिया था, जिससे एक कुत्ते ने दुखी होकर जवाब दिया कि ईश्वर के बनाए जीवो में कोई फर्क नहीं होता। कुत्ता हो या मानव सभी को ईश्वर ने ही बनाया है। कुत्ते के कहे इन वचनों के कारण लश्कर को बाद में बहुत पछतावा हुआ और वह इस घटना को याद कर करके जिंदगी भर रोते रहे। इसी कारण अरब में लश्कर को नूह के नाम से याद किया जाता है।
(घ)
26 जनवरी 1931 को यादगार बनाने के लिए काफी तैयारियां काफी समय पहले से करनी आरंभ कर दी गईं थीं। इस दिन के प्रचार के लिए ही उस समय 2000 तक खर्च कर दिए गए थे। कार्यकर्ताओं को उनका कार्य घर-घर जाकर समझाया गया था। पूरे कलकत्ता में जगह-जगह तिरंगे झंडे लगाए गए थे। सारे कलकत्ता वासियों ने अपने घरों दुकानों को खूब सजाया। इस दिन कई जगहों पर जुलूस निकाले गए और जगह-जगह तिरंगा झंडा फहराया गया। सुभाष बाबू के नेतृत्व में एक विशाल जुलूस आगे बढ़ता गया। पुरुषों के जुलूस पर पुलिस द्वारा रोग लगा देने के बाद महिलाओं ने मोर्चा संभाल लिया और महिलाओं ने टोलियों में बंटकर जुलूस निकालना शुरू कर दिया। लोग इस दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में यादगार बनाना चाहते थे। पूरा शहर तिरंगे झंडे से पटा पड़ा था। ऐसा लगता था कि भारत को सचमुच में आजादी मिल गई हो।