निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए ( लगभग 500 शब्दों में) हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले संभावित कार्यों की चर्चा कीजिए।
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हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले संभावित कार्यों को लेकर पुरातत्त्वविदों ने भिन्न-भिन्न मत दिए है, जो निम्नलिखित हैं -
(1) पुरावस्तुओं में एकरूपता का कार्य :
हड़प्पा समाज में सत्ता के द्वारा जटिल एवं सार्वभौमिक निर्णय लेने और उन्हें कार्यान्वित करने जैसे कार्य किए जाते थे, क्योंकि इसकी पुष्टि हड़प्पाई पुरातात्विक वस्तुओं से होती है, जैसे मृदभांडों, मुहरों, बांटो, ईंटों में समांतर एकरूपता होती है। अतः पुरावस्तुओं में एकरूपता शासन के अस्तित्व को प्रदर्शित करती है।
(2) सार्वजनिक कार्य :
अनेक पुरातत्त्वविदों का यह भी मानना था कि बस्तियों की स्थापना के परिपेक्ष में महत्वपूर्ण निर्णय लेना; जैसे स्नानगार व दुर्ग के निर्माण की संरचना, भवनों का एक आकार, चबूतरे का निर्माण, लाखों की संख्या में श्रमिकों की व्यवस्था करना आदि कठिन कार्य संभवतः राजनीतिक सत्ता ही कर सकती है।
(3) अनुष्ठानिक कार्य :
हड़प्पा सभ्यता के सुसंगठित स्वरूप एवं व्यापकता के कारण पुरातत्त्वविदों ने यहां किसी शासन सत्ता के होने का अनुमान व्यक्त किया है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल भगवान को कुछ पुरातत्त्वविदों ने प्रसाद की संज्ञा दी है। दूसरी ओर पत्थर की एक मूर्ति को अनेक पुरातत्व ने पुरोहित राजा की संज्ञा दी है। ऐसा अनुमान उन्होंने मेसोपोटामिया सभ्यता के पुरोहित राजाओं की संकल्पना के आधार पर लगाया है।
(4) व्यापारिक कार्य :
सुदूरवर्ती क्षेत्रों में अनेक अभियानों के द्वारा उत्पादन हेतु कच्चा माल प्राप्त किया जाता था, जैसे कि खेतड़ी (राजस्थान) में तांबे तथा दक्षिण भारत में सोने की प्राप्ति के लिए अभियान किए जाते थे। तीसरी सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व के मेसोपोटामिया के लेखों में मगान (ओमान) से तांबा आयात करने का वर्णन है। अतः इन सभी विवरणों से ऐसा प्रतीत होता है कि यह सभी अभियान हड़प्पा के शासकों के नेतृत्व में संपन्न होते थे। यह अभियान सड़क मार्ग और जल मार्ग द्वारा कुशलता पूर्वक संपन्न किए जाते थे।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर राजनीतिक सत्ता को धार्मिक अनुष्ठानों से जोड़ा गया है परंतु अभी तक पुरातत्त्वविदों ने इस अनुमान पर सत्यता स्पष्ट नहीं की है और न इसे उचित माना गया है।
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।
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Explanation:
हडप्प्पा संस्कृति की व्यापकता एवं विकास को देखने से ऐसा लगता है कि यह सभ्यता किसी केन्द्रीय शक्ति से संचालित होती थी। वैसे यह प्रश्न अभी विवाद का विषय बना हुआ है, फिर भी चूंकि हडप्पावासी वाणिज्य की ओर अधिक आकर्षित थे, इसलिए ऐसा माना जाता है कि सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता का शासन वणिक वर्ग के हाथ में था।
ह्नीलर ने सिंधु प्रदेश के लोगों के शासन को 'मध्यम वर्गीय जनतंन्त्रात्मक शासन' कहा और उसमें धर्म की महत्ता को स्वीकार किया।
स्टुअर्ट पिग्गॉट महोदय ने कहा 'मोहनजोदाड़ों का शासन राजतन्त्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक' था।
मैके के अनुसार ‘मोहनजोदड़ो का शासन एक प्रतिनिधि शासक के हाथों था।
सैंधव-सभ्यता का विनाश
सैधव-सभ्यता के पतन के संदर्भ में ह्नीलर का मत पूरी तरह से अमान्य हो चुका है। हरियूपिया का उल्लेख जो ऋग्वेद में प्राप्त है उस ह्नीलर ने हड़प्पा मान लिया और किले को पुर और आर्या के देवता इंद्र को पुरंदर (किले को नष्ट करने वाला) मानकर यह सिद्धांत प्रतिपादित कर दिया कि सैंधव नगरों का पतन आर्यो के आक्रमण के कारण हुआ था। ज्ञातव्य है कि ह्नीलर का यह सिद्धान्त तभी खंडित हो जाता है जब सिंधु-सभ्यता को नागरीय सभ्यता घोषित किया जाता है। मोहनजोदाड़ो से प्राप्त नर कंकाल किसी एक की समय के नहीं है जिनमें व्यापक नरसंहर द्योतित हो रहा है।
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