निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250-300 शब्दों में) सूफी मत के मुख्य धार्मिक विश्वासों और आचारों की व्याख्या कीजिए।
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सूफी मत के मुख्य धार्मिक विश्वासों और आचारों का वर्णन इस प्रकार है :
(1) सूफियों ने रूढ़िवादी परिभाषाओं तथू धर्माचार्यों द्वारा दी गई कुरान और पैगंबर के व्यवहार की बौद्धिक व्याख्या की आलोचना की। उन्होंने कुरान की व्याख्या अपने निजी अनुभवों के आधार पर की।
(2) उन्होंने मुक्ति पाने के लिए ईश्वर की भक्ति और उनके आदेशों के पालन पर बल दिया।
(3) उन्होंने पैगंबर मोहम्मद को इंसान ए- कामिल बताते हुए उनका अनुसरण करने की शिक्षा दी।
(4) वे किसी औलिया या पीर की देखरेख में जिक्र, चिंतन ,समा, नृत्य, नीति चर्चा ,सांस पर नियंत्रण आदि क्रियाओं द्वारा मन को प्रशिक्षित करने के पक्ष में थे।
(5) वे सदाचारिता और मानव के प्रति दयालुता पर बल देता थे।
(6) वे सूफी संतों की दरगाहों पर तीर्थ यात्रा करते थे। नाच और संगीत भी जियारत के भाग थे। विशेषकर कव्वालों द्वारा प्रस्तुत रहस्यवादी गुणगान, ताकि अलौकिक आनंद की भावना को उभारा जा सके। सूफ़ी संत जिक्र या फिर समा अर्थात आध्यात्मिक संगीत की महफिल द्वारा ईश्वर की उपासना में विश्वास रखते थे।
(i) सूफियों के अनुसार ईश्वर एक है। सभी जीव उसी से उत्पन्न होते हैं। इसलिए सभी जीव एकसमान हैं।
(ii) सूफी संत के अनुसार ईश्वर सर्वशक्तिमान है। उसका निवास सृष्टि के कण-कण में है।
(iii) सूफी संतों का विचार है कि हमें सच्चे मन से प्रभु भक्ति करनी चाहिए । यदि मनुष्य प्रभु प्रेम में मग्न हो जाएं तो वह उसे शीघ्र ही पा सकता है।
(iv) सूफी संतों का कहना है कि मनुष्य को अपना सबकुछ ईश्वर की इच्छा पर छोड़ देना चाहिए।
(v) सूफी संत में गुरु को बहुत ऊंचा स्थान दिया गया है । गुरु ही मनुष्य को सच्चा मार्ग दिखाता है।
(vi) सूफी संत के अनुसार मनुष्य को सांसारिक पदार्थों के साथ मोह नहीं करना चाहिए।
(vii) सूफी संत के अनुसार सेवा तथा जरूरतमंद लोगों की सहायता करना प्रभु भक्ति करने के समान है । इसी उद्देश्य से शेख निजामुद्दीन औलिया के खानकाह में एक सामुदायिक लंगर चलाई जाती थी जो फुतूह पर चलती थी। सुबह से देर रात तक चलने वाली इस रसोई में सभी वर्गों के लोग भोजन करते थे।
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।
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Explanation:
सूफी मत के मुख्य धार्मिक विश्वासों और आचारों की व्याख्या कीजिए। उत्तर: ... इन लोगों ने रूढ़िवादी परिभाषाओं तथा धर्माचार्यों द्वारा की गई कुरान और सुन्ना (पैगम्बर के व्यवहार) की बौद्धिक व्याख्या की आलोचना की। उन्होंने मुक्ति की प्राप्ति के लिए ईश्वर की भक्ति और उनके आदेशों के पालन पर बल दिया।