History, asked by maahira17, 10 months ago

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए :
उत्तर-मौर्य काल में विकसित राजत्व के विचारों की चर्चा कीजिए।

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Answered by nikitasingh79
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उत्तर-मौर्य काल में राजत्व के जिन विचारों का विकास हुआ उनकी प्रमुख विशेषता थी राजा का दैविक स्वरूप।  

राजा उच्च स्थिति प्राप्त करने के लिए स्वयं को देवी देवताओं के साथ जोड़ने लगे। मध्य एशिया से लेकर पश्चिमोत्तर भारत तक शासन करने वाले कुषाण शासकों ने इस तरीके का भरपूर प्रयोग किया । कुषाण इतिहास की रचना अभिलेखों तथा साहित्य परंपरा के माध्यम से की गई है। जिस प्रकार के राजधर्म को कुषाण शासकों ने प्रस्तुत करने का प्रयास किया, उसका सर्वोत्तम प्रमाण उनके सिक्कों और मूर्तियों से प्राप्त होता है।

1. कुषाण राजा:

(क) उत्तर प्रदेश के मथुरा के पास स्थित माट के देवस्थान पर कुषाण शासकों की विशालकाय मूर्तियां मिली है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि मूर्तियों के माध्यम से कुषाण स्वयं को देव्य तुल्य प्रस्तुत करना चाहते थे।  कुषाण राजाओं ने खुद को देवपुत्र कहा और इसलिए, उन्हें भगवान का दर्जा दिया। उन्होंने मंदिरों में स्वयं की महान प्रतिमाएँ बनवाईं।

(ख) कुषाण शासकों के सिक्कों पर भी एक राजा की भव्य प्रतिमा दिखाई गई है। सिक्के के दूसरी ओर एक देवता का चित्र है । ऐसे सिक्के भी कुषाणों को देव तुल्य दर्शाने के लिए जारी किए गए थे।  

2. गुप्त शासक:

(क) राजत्व का दूसरा विकास गुप्त वंश के दौरान पाया जाता है। यह बड़े आकार के राज्यों का दौर था। इनमें से कई राज्य सामंतों पर निर्भर थे। ये सामंत अपना निर्वाह स्थानीय संसाधनों द्वारा करते थे जिसमें भूमि पर नियंत्रण भी शामिल था। सामंत अपने शासकों का सम्मान करते थे और आवश्यकता के समय उन्हें सैनिक सहायता भी देते थे। कुछ शक्तिशाली सामंत राजा भी बन जाते थे। दूसरी ओर यदि राजा दुर्बल होते थे तो वे अपने से अधिक शक्तिशाली शासकों के अधीन हो जाते थे।  

(ख) गुप्त शासकों के इतिहास के निर्माण में साहित्य शिक्षण अभिलेखों की सहायता ली गई है।  बहुत बार कवि सम्राट की प्रशंसा करने के लिए उनका वर्णन करते हैं, और राज्य के बारे में भी जानकारी देते थे। एक अच्छा उदाहरण हरीसेना का है जिसने महान गुप्त शासक समुद्रगुप्त की प्रशंसा की।  

आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।

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Answered by Anonymous
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Explanation:

उत्तर-मौर्य काल में राजत्व के जिन विचारों का विकास हुआ उनकी प्रमुख विशेषता थी राजा का दैविक स्वरूप।

  • राजा उच्च स्थिति प्राप्त करने के लिए स्वयं को देवी देवताओं के साथ जोड़ने लगे।

  • मध्य एशिया से लेकर पश्चिमोत्तर भारत तक शासन करने वाले कुषाण शासकों ने इस तरीके का भरपूर प्रयोग किया ।

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