निम्नलिखित पदानाम् सन्धि-विच्छेद कृत्वा जामापि लिखत-
२. अनैतिक ३.हरिश्चंद्र:
४.वधरागमन
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Answer:
व्याकरण के सं
दर्भ में 'सन्धि' शब्द का अर्थ है वर्णविकार। यह वर्णविधि है। दो
पदों या एक ही पद में दो वर्णों के परस्पर व्यवधानरहित सामीप्य अर्थात स् ंहि ता
में जो वर्णविकार (परिवर्तन) होता है, उसे सन्धि कहते हैं, यथा— विद्या +
आलय: = विद्यालय:। यहाँ पर विद् + आ +
य् आ + लय: में आ + आ की
अत्यन्त समीपता के कारण दो दीर व्घ र्णोें के स्थान पर एक 'आ' वर्ण रूप दीर्घ
एकादेश हो गया है । सन्धि के मख्ुयतया तीन भेद होते हैं—
1. स्वर सन्धि (अच सन्धि), ्
2. व्यं
जन सन्धि (हल सन्धि), एव ् ं
3. विसर्ग सन्धि
1. स्वर (अच्) सन्धि
दो स्वर वर्णों की अत्यंत समीपता के कारण यथाप्राप्त वर्णविकार को स्वर
सन्धि कहते हैं। इसके निम्नलिखित भेद हैं—
i) दीर्घसन्धि (अक: सवर्णेदीर्घ:)— यदि ह्रस्व या दीर अ, इ, उ ्घ तथा
'ऋ' स्वरों के पश्चात ह्रस् ् व या दीर अ, इ, उ ्घ या ऋ स्वर आएँ तो दोनों
िमलकर क्रमश: आ, ई, ऊ तथा ऋॄ हो जाते हैं।
अ/आ + आ/अ = आ इ/ई + ई/इ = ई
उ/ऊ + ऊ/उ = ऊ ऋ/ऋृ + ऋृ/ऋ = ऋृ
उदाहरण—
पस्
ुतक + आलय: = पस्
ुतकालय:
देव + अाशीष: = देवाशीष:
सन्धि
तृ
तीय अध्याय
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2020-21
14 व्याकरणवीथि:
दैत्य + अरि: = दैत्यारि:
च + अपि = चापि
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
गिरि + इन्द्र = गिरीन्द्र:
कपि + ईश: = कपीश:
मही + ईश: = महीश:
नदी + ईश: = नदीश:
लक्ष्मी + ईश्वर: = लक्ष्मीश्वर:
स + उ ु क्ति: = सक
ू्ति:
भान + उद ु य: = भानद
ूय:
पित + ऋणम ृ ् = पितणमॄ ्
ii) गु
ण* सन्धि (आद्गु
ण:)— यदि 'अ' या 'आ' के बाद 'इ' या 'ई' आए।
दोनों के स्थान पर ए एकादेश हो जाता है। इसी तरह यदि 'अ' या 'आ'
के बाद 'उ' या 'ऊ' आए तो दोनों के स्थान पर 'ओ' एकादेश हो जाते हैं।
इसी तरह 'अ' या 'आ' के बाद यदि 'ऋ' आए तो दोनों के स्थान पर 'अर'
्
एकादेश हो जाता है।
उदाहरण —
अ/आ + इ/ई = ए
उप + इन्द्र: = उपेन्द्र:
देव + इन्द्र: = देवेन्द्र:
गण + ईश: = गणेश:
महा + ईश: = महेश:
नर + ईश: = नरेश:
सर + ईश: ु = सरेश:
Explanation
read and understand
i dont understand it '-'