निम्नलिखित पद्यांशो के भावार्थ लिखिए
विषुवत रेखा का वासी जो जीता है नित हाँफ-हाँफ कर
रखता है अनुराग अलौकिक वह भी अपनी मातृभूमि पर
ध्रुववासी जो हिम में तम में जी लेता है हाफ-हाफ कर वह भी
अपनी मातृभूमि पर कर देता है प्राण निछावर।
अथवा भाव विस्तार कीजिए :-
जिव आवे संतोष धन, सव धन धुरि समान'
।
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Answer:
कवि कहता है कि भूमध्य रेखा के निकटवर्ती स्थानों पर बहुत गर्मी रहती है वहाँ के निवासी अत्यधिक गर्मी के कारण हांफ –हांफ कर जीवन यापन करते हैं फिर भी उन्हें अपनी मातृभूमि से अलुकिक प्रेम होता है | इसी प्रकार ध्रुवप्रदेशों के लोगों को अधिक सर्दी का सामना करना पड़ता है फिर भी मातृभूमि के प्रति उनका प्रेम कम नहीं होता |मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर देते हैं |
जब आवे संतोष-धन, सब धन धूरि समान!!"
अर्थात् संसार में गो-रूपी धन, हाथी-रूपी धन, घोड़े-रूपी धन तो हैं ही, और भी तरह-तरह के रतनों, धनों की खानें मौजूद हैं। लेकिन उनसे आदमी का मन कभी भी नहीं भर सकता। हाँ, जब आदमी के पास सन्तोष-रूपी धन आ जाता है, तब बाकी सभी प्रकार के धन धूल या मिट्टी के समान हो जाया करते हैं।
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यह उत्तर आपकी सहायता करेगा
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प्रस्तुत काव्यांश मे कवि क्या संदेश दे रहा है