निम्नलिखित पद्यांश की सन्दर्भ सहित हिन्दी में व्याख्या कीजिए और उसका काव्यगत-सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए—
जौ चाहत, चटक न घटै, मैलौ होइ न मित ।
रज राजसु न छुवाइ तौ, नेह-चीकनौं चित ।।
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जो चाहौ चटक न घटै मैलो होइ न मित्त।
रज राजस न छुवाइयै नेहु चीकनैं चित्त॥
संदर्भ = यह पंक्तियां कवि बिहारी द्वारा रचित ‘बिहारी की सतसई’ से ली गई हैं, इनका भावार्थ इस प्रकार है।
भावार्थ = बिहारी कहते है कि हे मित्र अगर ये चाहते हो कि मन की चमक कम न हो वह मलिन यानि गंदा न हो तो उसे प्रेम रूपी तेल से चिकना करके उस धन-वैभव रूपी धूल न पड़ने दो।
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निम्नलिखित पद्यांश की सन्दर्भ सहित हिन्दी में व्याख्या कीजिए और उसका काव्यगत-सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए—
सौरभ भीना झीना गीला
लिपटा मृदु अंजन-सा दुकूल;
चल अंचल से झर-झर झरते
पथ में जुगनू के स्वर्ण-फूल;
दीपक से देता बार-बार
तेरा उज्ज्वल चितवन-विलास !
रूपसि तेरा घन-केश-पाश !
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