Hindi, asked by ZennyISMyFriend1138, 10 months ago

निम्नलिखित पद्यांश की सन्दर्भ सहित हिन्दी में व्याख्या कीजिए और उसका काव्यगत-सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए—
जगतु जनायौ जिहिं सकलु, सो हरि जान्यौ नाँहि ।
ज्यौं आँखिनु सबु देखिये, आँखि न देखी जाँहि ।।

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Answered by bhatiamona
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जगतु जनायौ जिहिं सकलु, सो हरि जान्यौ नाँहि।

ज्यौं आँखिनु सबु देखिये, आँखि न देखी जाँहि।।

संदर्भ = यह दोहा कवि बिहारी द्वारा रचित दोहा है। इस दोहे में कवि बिहारी ईश्वर को न पाने की स्थिति पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या = बिहारी कहते हैं कि हे मनुष्य जिस ईश्वर ने तुम्हें बनाया, तुम्हें इस संसार का ज्ञान कराया, तुम उसी ईश्वर को नहीं समझ पाए, उसे ही नहीं जान पाए। यह उसी प्रकार है जैसे आंखें से सब कुछ देखा जा सकता है परंतु आंखें स्वयं को नहीं देख सकती।

काव्यगत सौंदर्य = इस दोहे में सारे संसार का ज्ञान कराने वाले ईश्वर से अनजान मनुष्य के बारे में बताया गया है। काव्य की भाषा ब्रज है, शैली मुक्तक है और यह एक दोहा शैली का छंद है। इसमें शांत रस प्रकट हो रहा है। इसमें में अनुप्रास अलंकार का भी प्रयोग किया गया है।

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मन रे तन कागद का पुतला।

लागै बूँद बिनसि जाइ छिन में, गरब कर क्या इतना।

इसका अर्थ

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