Hindi, asked by madhusingh2713, 11 months ago

निम्नलिखित पद्यांश की सन्दर्भ सहित हिन्दी में व्याख्या कीजिए और उसका काव्यगत-सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए—
नभ में गर्वित झुकता न शीश,
पर अंक लिये हैं दीन क्षार;
मन गल जाता नत विश्व देख,
तन सह लेता है कुलिश भार ।
कितने मृदु कितने कठिन प्राण ।

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Answered by bhatiamona
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निम्नलिखित पद्यांश की सन्दर्भ सहित हिन्दी में व्याख्या और उसका काव्यगत-सौन्दर्य

प्रसंग: कवयित्री ने इन पंक्तियों में हिमालय की कठोरता और कोमलता का वर्णन किया है|

व्याख्या: कवयित्री का कथन है की हे हिमालय | स्वाभिमान से आकाश को छूने वाला तुम्हारा मस्तक किसी शक्ति के  सम्मुख कभी नहीं झुकता है

तुम फिर भी , तुम्हारा दिल इतना उदार है की तुम अपनी गोद में तुच्छ धूल को भी धारण किए रहते हो | सारे  विश्व को  अपने चरणों में झुका देखकर तुम्हारा दिल पिघलकर सरिताओं के रूप में प्रवाहित होने लगता है| हे हिमालय | तुम अपने शरीर पर वज्र के आघात सहकर  भी विचलित नहीं होते |  तुम बहुत दिल से कोमल और शरीर से कठोर हो |

काव्यगत-सौन्दर्य

इन पंक्तियों में कवयित्री ने हिमालय का मानवीकरण करते हुए उस के कोमल और कठोर स्वरूप का चित्रण किया है |

भाषा सरल , साहित्यिक बोली|

रस -शांत  

छन्द-अतुकान्त-मुक्त  

गुण-माधुर्य

शब्द-शक्ती -लक्षण  

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निम्नलिखित पद्यांश की सन्दर्भ सहित हिन्दी में व्याख्या कीजिए और उसका काव्यगत-सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए—

ऐसा रण, राणा करता था,

पर उसको या सन्तोष नहीं ।

क्षण-क्षण आगे बढ़ता था वह,

पर कम होता था रोष नहीं ।।

कहता था लड़ता मान कहाँ,

मैं कर लूँ रक्त-स्नान कहाँ ?

जिस पर तय विजय हमारी है,

वह मुगलों का अभिमान कहाँ ?

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