निम्नलिखित पद्यांश की सन्दर्भ सहित हिन्दी में व्याख्या कीजिए और उसका काव्यगत-सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए—
सौरभ भीना झीना गीला
लिपटा मृदु अंजन-सा दुकूल;
चल अंचल से झर-झर झरते
पथ में जुगनू के स्वर्ण-फूल;
दीपक से देता बार-बार
तेरा उज्ज्वल चितवन-विलास !
रूपसि तेरा घन-केश-पाश !
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निम्नलिखित पद्यांश की सन्दर्भ सहित हिन्दी में व्याख्या और उसका काव्यगत-सौन्दर्य भी स्पष्ट
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियों में वर्षा सुन्दरी के श्रृंगार का अद्भुत वर्णन किया गया है|
व्याख्या: कवयित्री कहती है की वर्षारूपी नायिका | तुमने बादलों के रूप में एक सुगंधित , पारदर्शक , कुछ गिला और हल्का काले रंग का झीना रेशमी वस्त्र धारण कर लिया है| आकाश में चमकने वाले जुगनू ऐसे लग रहे है , मानो तुम्हारे हिलते हुए आंचल से मार्ग में सोने के फूल झर रहे हो| बादलों में चमकती बिजली ही तुम्हारी उज्ज्वल चितवन है| जब तुम अपनी ऐसी सुन्दर दृष्टि किसी पर डालती हो तो उसके मन में प्रेम के दिपक जगमगाने लगते है | हे रूपवती वर्षा सुन्दरी | तुम्हारी बादलरूपी केश-राशि अत्यधिक सुन्दर है|
काव्यगत-सौन्दर्य
कवयित्री ने प्रकृति के मानवीकरण के सहारे उसकी भाव का सुन्दर वर्णन किया है|
भाषा साहित्यिक खड़ी बोली|
रस- श्रृंगार
शैली-वर्णात्मक
शैली-चित्रात्मक और प्रतीकात्मक
छंद-अतुकान्त और मुक्त
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निम्नलिखित संस्कृत-पद्यांश/श्लोक का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए—
किंस्विद् गुरुतरं भूमेः किंस्विदुच्चतरं च खात् ?
किंस्विद् शी्घ्रतरं वातात् किंस्विद् बहुतरं तृणात् ?
माता गुरुतरा भमेः खात् पितोच्चतरस्तथा ।
मनः शीघ्रतरं वातात् चिन्ता बहुतरी तृणात् ।।