निम्नलिखित पद्यांश की सन्दर्भ सहित हिन्दी में व्याख्या कीजिए और उसका काव्यगत-सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए—
अतुलनाय जिसके प्रताप का
साक्षी है प्रत्यक्ष दिवाकर ।
घूम-घूम-कर देख चुका है,
जिनकी निर्मल कीर्ति निशाकर ।।
देख चुके हैं जिनका वैभव,
ये नभ के अनन्त तारागण ।
अगणित बार सुन चुका है नभ,
जिनका विजय-घोष रण-गर्जन ।।
Answers
अतुलनाय जिसके प्रताप का
साक्षी है प्रत्यक्ष दिवाकर ।
घूम-घूम-कर देख चुका है,
जिनकी निर्मल कीर्ति निशाकर ।।
देख चुके हैं जिनका वैभव,
ये नभ के अनन्त तारागण ।
अगणित बार सुन चुका है नभ,
जिनका विजय-घोष रण-गर्जन ।।
संदर्भ — यह पंक्तियां कवि ‘रामनरेश त्रिपाठी’ जी द्वारा रचित “स्वदेश प्रेम” नामक कविता से ली गई हैं। “स्वदेश प्रेम” कविता त्रिपाठी जी के काव्य संग्रह स्वप्न से संकलित की गई है।
प्रसंग — कवि ने इन पंक्तियों के माध्यम से भारत के गौरवपूर्ण इतिहास की झांकी प्रस्तुत प्रस्तुत की है।
व्याख्या — कवि रामनरेश त्रिपाठी जी कहते हैं कि हे भारतीयो! तुम अपने उन पूर्वजों का स्मरण करो जिनके यश और गौरव रूपी कीर्ति का साक्षी सूरज भी रहा है। यह हमारे महान यशस्वी पूर्वज ही थे जिनकी धवल कीर्ति की गवाही चंद्रमा भी सब जगह घूम-घूमकर कर चुका है। हमारे पूर्वज ऐसे महान थे कि उनके ऐश्वर्य और गुणों का साक्षी तारों का अनंत समूह भी रहा है। हमारे पूर्वजों के विजय गाथाओं और युद्ध की गर्जनाओं को यह विशाल आकाश अनगिनत बार सुन चुका है।
कवि का इन पंक्तियों के माध्यम से कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे भारत के पूर्वजों के पवित्र यश, वैभव, युद्ध-कौशल, प्रताप, साहस, वीरता आदि जैसे गुण अद्भुत और अनुपम थे। हमें अपने पूर्वजों के गुणों से प्रेरणा लेनी चाहिए।