निम्नलिखित पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए: सीत को प्रबल सेनापति कोपि चढ्यो दल,
निबल अनल गयौ सूरि सियराइ कै।
हिम के समीर, तेई बेरमैं विषम तीर,
रही है गरम भौन कोनन मैं जाइ कै।
धूमनैन बहैं, लोग आगि पर गिरे हैं,
हिय सौं लगाई रहैं नैंक सुलगाई कै।
मानो भीत जानि महा सीत हैं पसारि पानि,
छतियाँ की छाँह राख्यौ पाउक छिपाइ कै।
अथवा
विशाल मंदिर की यामिनी में,
जिसे देखना हो दीपमाला।
तो तारकागण की ज्योति उसका,
पता अनूठा बता रही है।
प्रभो! प्रेममय प्रकाश तुम हो,
प्रकृति-पद्मिनी के अंशुमाली।
असीम उपवन के तुम हो माली
धरा बराबर बता रही है।
जो तेरी होवे दया दयानिधि,
तो पूर्ण होता ही है मनोरथ
सभी ये कहते पुकार करके,
यही तो आशा दिला रही है।
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