निम्नलिखित रचनाकारों का परिचय दीजिये
१) तुलसी दस
२) भारतेन्दु हरिश्चंद्र
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तुलसी दस
तुलसीदास जी हिंदी साहित्य के महान कवि थे , लोग तुलसी दास को वाल्मीकि का पुनर्जन्म मानते है। तुलसी दास जी अपने प्रसिद्ध कविताओं और दोहों के लिए जाने जाते हैं । उनके द्वारा लिखित महाकाव्य रामचरित मानस पूरे भारत में अत्यंत लोकप्रिय हैं । तुलसी दास जी ने अपना ज्यादातर समय वाराणसी में बिताया है । तुलसीदास जी जिस जगह गंगा नदी के किनारे रहते थे उसी जगह का नाम तुलसी घाट रखा गया और उन्होंने वहां संकट मोचन हनुमान का मंदिर बनाया था लोगों का मानना है कि वास्तविक रूप से हनुमान जी से तुलसी दास जी वहीं पर मिले थे , और तुलसी दास जी ने रामलीला की शुरुआत की।
तुलसी दास जी ने अपने देश जीवनकाल में काफी ग्रंथों को लिखा है जो कि निम्नलिखित है :–
रामचरित मानस, सतसई, बैरव रामायण, पार्वती मंगल, गीतावली, विनय पत्रिका, वैराग्य संदीपनी, रामललानहछू, कृष्ण गीतावली, दोहावली और कवितावली आदि है। तुलसीदास जी ने अपने सभी छन्दों का प्रयोग अपने काव्यों में किया है। इनके प्रमुख छंद हैं दोहा सोरठा चौपाई कुंडलिया आदि, इन्होंने शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों का भी प्रयोग अपने काव्यों और ग्रंथो में किया है और इन्होंने सभी रसों का प्रयोग भी अपने काव्यों और ग्रंथों में किया है ,इसीलिए इनके सभी ग्रंथ काफी लोकप्रिय रहे हैं।
जन्म :-
तुलसीदास जी का जन्म 1511 ई. में हुआ था । अक्सर लोग अपनी मां की कोख में 9 महीने रहते हैं लेकिन तुलसी दास जी अपने मां के कोख में 12 महीने तक रहे और जब इनका जन्म हुआ तो इनके दाँत निकल चुके थे और उन्होंने जन्म लेने के साथ ही राम नाम का उच्चारण किया जिससे इनका बचपन में ही रामबोला नाम पड़ गया । जन्म के अगले दिन ही उनकी माता का निधन हो गया। इनके पिता ने किसी और दुर्घटनाओं से बचने के लिए इनको चुनिया नामक एक दासी को सौंप दिया और स्वयं सन्यास धारण कर लिए। चुनिया रामबोला का पालन पोषण कर रही थी और जब रामबोला साढ़े पाँच वर्ष का हुआ तो चुनिया भी चल बसी। अब रामबोला अनाथों की तरह जीवन जीने के लिए विवश हो गया ।
नर हरिदास :-
नर हरिदास को बहुचर्चित रामबोला मिला और उनका नाम रामबोला से बदलकर तुलसी राम रखा और उसे अयोध्या उत्तर प्रदेश ले आए । तुलसी राम जी ने संस्कार के समय बिना कंठस्थ किए गायत्री मंत्र का स्पष्ट उच्चारण किया देख सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए । तुलसी राम जी काफी तेज बुद्धि वाले थे वे जो एक चीज बार सुन लेते थे तो उन्हें कंठस्थ हो जाता था
विवाह :-
29 वर्ष की अवस्था में राजापुर के निकट स्थित यमुना के उस पार उनका विवाह एक सुंदर कन्या रत्नावली के साथ हुआ। गौना न होने की वजह से वह कुछ समय के लिए काशी चले गए। काशी में रहकर हुए वेद वेदांग के अध्ययन में जुट गए, उनका अभी गौना नहीं हुआ था तो उनकी पत्नी मायके में ही थी, अंधेरी रात में ही यमुना को तैरकर पार करते हुए अपनी पत्नी के कक्ष पहुँचे गए। उनकी पत्नी लोक-लज्जा के भय से वापस चले जाने के लिए आग्रह किया । उनकी पत्नी रत्नावली स्वरचित एक दोहे के माध्यम से उनको शिक्षा दी। ये दोहा सुनने के बाद तुलसी राम से तुलसी दास बन गए।
ये दोहा सुनकर वे अपनी पत्नी का त्याग करके गांव चले गए और साधू बन गए, वहीं पर रहकर भगवान राम की कथा सुनाने लगे। उसके बाद 1582 ई. में उन्होंने रामचरित मानस लिखना प्रारंभ किया और 2 वर्ष 7 महीने 26 दिन में यह ग्रंथ संपन्न हुआ।
राम दर्शन :-
तुलसी दास जी हनुमान की बातों का अनुसरण करते हुए चित्रकूट के रामघाट पर एक आश्रम में रहने लगे और एक दिन कदमगिरी पर्वत की परिक्रमा करने के लिए निकले और वहीं पर उन्हें श्रीराम जी के दर्शन प्राप्त हुए। इन सभी घटनाओं का उल्लेख उन्होंने गीतावली में किया है।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
जन्म :-
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म 9 सितंबर 1850 बनारस के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। उनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था और 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी । भारतेन्दु आधुनिक हिंदी साहित्य के साथ-साथ हिंदी थियेटर के भी पितामह कहे जाते हैं । उनके पिता गोपाल चंद्र एक कवि थे। वह गिरधर दास के नाम से कविता लिखा करते थे । भारतेन्दु जब 5 वर्ष के हुए तो मां का साया सर से उठ गया और जब 10 वर्ष के हुए तो पिता का भी निधन हो गया । भारतीय नवजागरण की मशाल थामने वाले भारतेंदु ने अपनी रचनाओं के ज़रिए गऱीबी, ग़ुलामी और शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है ।
भाषाएँ :-
तेज़ याददाश्त और आज़ाद सोच रखने वाले भारतेन्दु कई भारतीय भाषाओं के जानकार थे । उन्होंने अपनी मेहनत से संस्कृत, पंजाबी, मराठी, उर्दू, बांग्ला, गुजराती भाषाएँ सीखीं । हालांकि, अंग्रेज़ी उन्होंने बनारस में उस दौर के मशहूर लेखक राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द से सीखी । एक दौर में भारतेन्दु की लोकप्रियता शिखर पर थी , जिससे प्रभावित होकर काशी के विद्वानों ने उन्हें 1880 में 'भारतेंदु` की उपाधि दी । भारतेन्दु के विशाल साहित्यिक योगदान के कारण 1857 से 1900 तक के काल को भारतेन्दु युग के नाम से जाना जाता है। 6 जनवरी 1885 को उनका देहांत हो गया था |
वह एक गद्यकार, कवि, नाटककार, व्यंग्यकार और पत्रकार :-
वह एक गद्यकार, कवि, नाटककार, व्यंग्यकार और पत्रकार थे । उन्होंने 'बाल विबोधिनी' पत्रिका , 'हरिश्चंद्र पत्रिका' और 'कविवचन सुधा' पत्रिकाओं का संपादन किया । भारतेन्दु ने सिर्फ 18 वर्ष की उम्र में 'कविवचनसुधा' पत्रिका निकाली, जिसमें उस वक्त के बड़े-बड़े विद्वानों की रचनाएं प्रकाशित होती थीं। हिंदी में नाटकों की शुरुआत भारतेन्दु हरिश्चंद्र से मानी जाती है। नाटक भारतेन्दु के समय से पहली भी लिखे जाते थे , लेकिन बाकायदा तौर पर खड़ी बोली में नाटक लिखकर भारतेन्दु ने हिंदी नाटकों को नया आयाम दिया। भारतेन्दु के नाटक लिखने की शुरुआत बांग्ला के विद्यासुंदर (1867) नाटक के अनुवाद से हुई।