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आलस बुरी बला है।
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आलस्य: सबसे बड़ा शत्रु पर हिंदी निबंध शरीरिक, मानसिक, तन-मन की उत्साहहीनता, कर्म न करने की प्रवत्ति, काम को टालने की आदत (दीर्घसूत्रता) को आलस्य कहते हैं। ... आलस्य हमें दरिद्र बनता है क्योंकि आलसी व्यक्ति परिश्रम नहीं करता तथा निरुद्यमी व्यक्ति कितना ही लक्ष्मीपति हो, उसका धन-भंडार शनैः शनैः खाली होता जाता है।
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आलश्य एक ऐसा भाव है जो मनुष्य को कार्य करने की इज़ाज़त नहीं देता अर्थात मनुष्य कोई भी काम नहीं करना चाहता। उसे कोई भी कार्य करना अच्छा नहीं लगता शिवाय आराम फरमाने के। आलस मनुष्य को दुर्गम मार्ग पर ले जाता है। आलसी मनुष्य को अपने कुर्शी से उठने में भी कठिनाई होती है। उसे लगता है की उसका काम कोई दूसरा व्यक्ति कर दे तो उसकी नींद पूरी हो जाए। अब बताइये आलसी मनुष्य अपना दुश्मन खुद ही बन जाता है। उसे परिश्रम का महत्व समझ नहीं आता।मनुष्य में कई तरह के दोष है जैसे, लालच, क्रोध, हिंसा, जलन आदि लेकिन सबसे भयानक आलस का रोग है। आलस मनुष्य को असफलता के राह पर ले जाता है। असफलता, अवनति और विनाश आलसी मनुष्य के परिणाम है। शेर भी जंगल में शिकार करके अपनी भूख मिटाता है। शेर जंगल का राजा होता है लेकिन वह भी परिश्रम करके जानवर का शिकार करता है। कहने का तात्पर्य है बिना कोई काम किये किसी को जीवन में लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती।
मेहनत करने से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। एक छोटा सा बच्चा भी 1 साल के बाद मेहनत से चलने की कोशिश करता है चाहें वह कितनी बार भी गिर जाए वह हार नहीं मानता लेकिन आलसी इंसान की बात ही कुछ और है। आलसी मनुष्य भाग्य के सहारे जीता है। मेहनत पर उसे विश्वास नहीं है। कोई भी या किसी भी परिश्थिति में इंसान को भाग्य के भरोसे नहीं रहना चाहिए।
नसीब कब अंगूठा दिखाकर चली जाए पता नहीं चलता। ईश्वर ने हमें सही सलामत बनाया है हमें इसका उपयोग करने की आवशयकता है। इतनी खुबशुरत ज़िन्दगी में आलसी लोग बैठे और सोये हुए अपना गुज़ारा करते है। सुबह उठने में आलस बुरी संगती में अच्छे खासे लोग आलसी बन जाते है