Hindi, asked by Priyanshu2005, 1 year ago

निम्नलिखित विषयों पर निबंध लिखिए -

खेलकूद एवं व्यायामका महत्व​

Answers

Answered by suhani2006
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Answer:

here it is!!

Explanation:

स्वस्थ मनोरंजन एवं ख़ाली समय को भरने के लिए इस्लाम व्यायाम एवं खेलकूद की सिफ़ारिश करता है। आप एक दिन में या एक सप्ताह में या एक महीने में अपना कितना समय व्यायाम एवं खेलकूद में बिताते हैं? दुर्भाग्यवश हमारा आधुनिक जीवन कुछ इस प्रकार का है कि व्यायाम करने के लिए हम कम ही समय निकाल पाते हैं। हालांकि यह कहा जा सकता है कि आज हमें किसी भी समय की तुलना में व्यायाम एवं कसरत की अधिक ज़रूरत है।

जैसा कि आप जानते हैं और निश्चित रूप से आपने अनुभव भी किया है कि मनुष्य एक काम को बार बार दोहराने से थक जाता है और उसे थकन दूर करने की ज़रूरत पड़ती है। विभिन्न प्रकार के व्यायाम न केवल शारीरिक थकन को दूर करते हैं बल्कि शरीर को स्वस्थ एवं शक्तिशाली बनाते हैं। इसलिए व्यायाम एवं खेलकूद न केवल वांछित है बल्कि कुछ अवसरों पर आवश्यक एवं अनिवार्य है। इसलिए कि व्यायाम पर ध्यान नहीं देना शरीर को गंभीर रूप से नुक़सान पहुंचा सकता है।

बुद्धि एवं धर्म की दृष्टि से व्यायाम शरीर के स्वास्थ्य एवं मज़बूती के लिए ज़रूरी हैं। जिस व्यक्ति का शरीर स्वस्थ, शक्तिशाली एवं तरो ताज़ा नहीं है वह बुद्धि और सही विचार का उपयोग कम ही कर पाता है। एक प्रसिद्ध मुहावरा है, स्वस्थ बुद्धि स्वस्थ शरीर में होती है, इसलिए कि मन व शरीर का परस्पर प्रभाव पुष्ट एवं निर्विरोध विषय है। आलस्य एवं शारीरिक निष्क्रियता शरीर को कमज़ोर करती है या बहुत अधिक मोटा बना देती है, ऐसे लोग मानसिक रूप से शांत एवं प्रफुल्लित नहीं रह सकते। ऐसे लोग सामान्य रूप से चिड़चिड़े, झगड़ालू, टाल मटोल करने वाले और अनैतिक विचार एवं बीमार सोच रखने वाले होते हैं। यह विषय उनके शरीर पर भी बुरा प्रभाव डालता है। इस्लाम शारीरिक शक्ती एवं स्वास्थ्य को विशेष महत्व देता है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है, खेलो कूदो और मनोरंजन करो, इसलिए कि मुझे तुम्हारे धर्म में हिंसा एवं उदासीनता पसंद नहीं है।

hope it will help youuuu mate....

Answered by dobhalmani24
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Answer:

मानव-जीवन में अनेक प्रकार की परेशानियाँ और तनाव है । लोग विभिन्न प्रकार की चिंताओं से घिरे रहते हैं । खेल-कूद हमें इन परेशानियों, तनावों एवं चिंताओं से मुक्त कर देती है । खेल-कूद को जीवन का आवश्यक अंग मानने वाले जीवन में आने वाली समस्याओं का सामना करने में सक्षम होते हैं ।

संत रामकृष्ण परमहंस का कथन है कि ईश्वर ने संसार की रचना खेल-खेल में की है । अर्थात् परमात्मा को खेल बहुत पसंद है । तो फिर परमात्मा की कृति मनुष्य खेलों से क्यों दूर रहे! खेल खेलकर ही लोग जान सकते हैं कि जीवन एक खेल है । जीवन को बहुत गंभीर और तनावयुक्त नहीं बनाना चाहिए । सभी हँसते-खेलते जिएँ तो संसार की बहुत-सी परेशानियाँ मिट जाएँ । अत: जीवन में खेल-कूद का महत्त्वपूर्ण स्थान होना चाहिए ।

खेल-कूद स्वास्थ्यवर्धक होते हैं । ये शरीर के विभिन्न अंगों के उचित संचालन में मददगार होते हैं । खेलने से शरीर का व्यायाम होता है तथा पसीने के रूप में शरीर में जमा जल बाहर निकल आता है । खेल-कूद शरीर और मन में ताजगी लाता है । इनसे मांसपेशियाँ सुगठित हो जाती हैं । मन की ऊब मिटाने और चित्त में प्रसन्नता लाने के लिए खेलों की जितनी भूमिका है उतनी शायद अन्य किसी चीज की नहीं । यही कारण है कि अलग- अलग समाज और देश में विभिन्न प्रकार के खेलों को पर्याप्त महत्त्व दिया जाता है ।

विद्‌यालयों तथा अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में खेल-कूद को शिक्षा का एक आवश्यक अंग माना जाता है । खेलों से संबंधित अनेक प्रकार की प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं । विद्‌यालयों में वार्षिक खेल समारोह होते हैं । हर दिन एक घंटी खेल की घंटी होती है । खेल-प्रशिक्षक इस घंटी में बच्चों को तरह-तरह के खेल खेलना सिखाते हैं । बच्चे उत्साहित होकर खेलते हैं तथा तनाव से मुक्त होकर पुन : पढ़ाई में ध्यान केंद्रित करते हैं ।

बाल्यकाल और खेलों का गहरा नाता होता है । बच्चे खेलों के माध्यम से नई-नई बातें सीखते हैं । खेल उनका साहस और आत्म-विश्वास बढ़ाते हैं । खेलों से उनका तन सुगठित होता है । दूसरे बच्चों के साथ खेलते हुए वे आपस में स्वस्थ प्रतियोगिता करना एवं सहयोग करना सीखते हैं । उनमें धैर्य, सहिष्णुता, ईमानदारी, निष्ठा जैसे गुणों का उभार होता है । वे चुस्त एवं फुर्तीले बनते हैं । खेलों में मिली हार और जीत से वे नए-नए गुण एवं अनुभव प्राप्त करते हैं । वे हार से सबक लेते हैं और कमियों को दूर करते हैं । जीत उन्हें नए-उत्साह और प्रेरणा से भर देती है ।

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