नानी की कहानी शॉर्ट वन page
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लेखक आर.के. नारायण की पड़नानी, बाला, के जीवन पर आधारित है यह पुस्तक। सात साल की मासूम बाला का विवाह दस वर्षीय विश्वा से होता है। एक दिन विश्वा कुछ तीर्थयात्रियों के साथ यात्रा पर निकल जाता है और वर्षों तक उसकी कोई खबर नहीं मिलती। रिश्तेदारों, पास-पड़ोस के तानों से परेशान होकर बाला पति को खोजने खुद ही निकल पड़ती है और पूना में उसे ढूँढ लेती है। अपने पति को किसी तरह वापस घर आने के लिए मना लेती है। परदेस में बाला को कैसी-कैसी कठिनाइयों से दो-चार होना पड़ता है, कैसे रोमांचक और खट्टे-मीठे अनुभव होते हैं, पढि़ये इस पुस्तक में.... नानी की कहानी आर.के. नारायण की पड़नानी के जीवन पर लिखी रचना है जो उन्होंने अपनी नानी से सुनी। ज्यों-ज्यों उनकी नानी यह कहानी बताती हैं त्यों-त्यों लेखक की रचना भी विस्तार लेती है। जीवन्त चरित्रों और रोज़मर्रा की जि़न्दगी की छोटी-छोटी बातों पर पैनी नज़र से कलम चलाना आर.के. नारायण की विशेषता थी जिसकी झलक इस पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ पर मिलती है।
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राजनगर का राजा था हरि सिंह। बड़ा ही कंजूस और लालची। प्रजा के सुख-दुख की हरि सिंह को तनिक भी चिंता नही थी। उसके राज में जनता से भारी टैक्स वसूला जाता था मगर फिर भी कोई सुख सुविधाएं उपलब्ध नही कराई गई थीं।
जनता से बहुत अधिक टैक्स वसूलने के कारण राजा के खजाने में बहुत धन इकट्ठा हो गया था। सोने की मुद्राओं के बड़े-बड़े बोरे भर कर राज-कोष में रखवा दिए गए। जनता गरीब होती जा रही थी और अपने राजा से बहुत दुःखी थी।
अचानक पड़ोसी राज्य के राजा दुर्जन सिंह ने राजनगर पर हमला कर दिया। हरि सिंह की सेना दुर्जन सिंह की सेना से बड़ी थी लेकिन इसके बावजूद दुर्जन सिंह की सेना उन पर भारी पड़ी। दुश्मन की सेना ने राजनगर को जम कर लूटा। दुर्जन सिंह ने राजनगर का सारा खजाना लूट लिया। दुर्जन सिंह ने लूटपाट के लिए ही हमला किया था। खजाना लूट कर वो अपनी सेना के साथ वापस लौट गया।
दुर्जन सिंह के इस हमले के बाद राजनगर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई, सारा खजाना लुट चुका था। हरि सिंह ने अपने मंत्रियों और राजपुरोहित की सभा बुलाई। उसने अपने मंत्रियों से पूछा की संख्या में अधिक होने के बावजूद हमारी सेना दुर्जन सिंह की सेना से क्यों हार गई। सारे मंत्री आपस में विचार-विमर्श ही करते रह गए लेकिन डर के मारे कोई कुछ नहीं बोल पाया। कौन राजा के सामने उसकी बुराई करके अपनी जान को जोखिम में डालता।
राजपुरोहित ने साहस दिखाया और राजा से कहा कि राजन आपने अपनी जनता का इतना अधिक शोषण किया है कि आपकी प्रजा आप से घृणा करने लगी है। सिर्फ संख्या अधिक होने से युद्ध नहीं जीते जा सकते, जब तक सैनिकों में मनोबल, जोश और देशप्रेम नहीं होगा तब तक वह कभी भी नहीं जीत सकते हैं।
अच्छा तो इसका मतलब सैनिकों ने जानबूझटैक्स मेरा खजाना लुटवाया है – हरि सिंह ने गुस्से में कहा।
राजपुरोहित ने शांत स्वभाव से राजा को समझाया कि राजन राज-कोष में रखा धन आपका नहीं था वह जनता का धन था, आपका धन नहीं लुटा है बल्कि जनता का धन लुटा है। आपने तो इस धन को जनता से छीन कर अपने पास रखा हुआ था।
आप कहना क्या चाहते हैं राजपुरोहित जी? – हरि सिंह ने पूछा।
महाराज आप भविष्य में सिर्फ उतना ही टैक्स जनता से वसूलें जितना आपके राज्य को चलाने के लिए आवश्यक हो। खजाने में जमा धन पर दुश्मन की नजर रहती है और जनता से टैक्स जबरदस्ती वसूला जाता है इसकी वजह से जनता भी चिंतित रहती है। आपने खजाना भरने के बजाय इस धन से जनता को सुविधाएं उपलब्ध कराई होती तो आपको कभी हार का मुंह ना देखना पड़ता – राजपुरोहित ने राजा को समझाते हुए कहा। अब राजा की समझ में सारी बात अच्छी तरह आ गई।