८. नानी किस की कहानी सुनाया करती थी ?
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हम बचपन में अपने दादा-दादी, नाना-नानी और परिवार के अन्य बड़े सदस्यों से कहानियां सुना करते थे और उन्हें सुनकर बड़े हुए। उन कहानियों के साथ हम एक काल्पनिक यात्रा पर निकल पड़ते थे। वे बड़े अच्छे दिन थे जब नानी हमें बीरबल की बुद्धि, पांडवों की धार्मिकता, विक्रम और बेताल की कहानियां सुनाया करती थीं।
उन कहानियों से हमें जीवन के कुछ महत्वपूर्ण सबक सीखने में मदद मिली, लेकिन बढ़ती टेक्नोलॉजी ने हमारे जीवन के हर पहलू पर वार किया है। आज का सामाजिक ढांचा बदल गया है। अब जॉइंट फैमेली नहीं रह गई है, एकल परिवारों का चलन है और माता-पिता दोनों कामकाजी हैं तो बच्चों को कहानी कौन सुनाए? अब सब टेक्नोलॉजी पर निर्भर हो गए हैं। लेकिन हम आपको यहां बता रहे हैं कहानी कहने के लाभ-
बच्चों का शब्दकोश बढ़ता है : कहानी कहने का एक बड़ा लाभ यह है कि कहानियों को सुनकर बच्चों की शब्दावली बढ़ती है। उनको कुछ समझ नहीं आता तो वे पूछ्ते हैं कि इसका क्या मतलब है? इस प्रकार वे नए-नए शब्द सिखते हैं और फिर ज़रूरत पड़ने पर यूज़ करते हैं। डिजिटल मीडिया पर बच्चे कहानियां सुन तो लेते हैं पर उनके मन में अगर कोई प्रश्न आता है तो उसका समाधान उन्हें नहीं मिल पाता। जब आप उन्हें उस शब्द का मतलब बताएंगे और एक-दो उदाहरण देंगे तो वह बात बच्चे की स्मृति में लंबे समय के लिए रह जाती है।
बच्चों की सुनने की क्षमता को बढ़ाता है : रिसर्च से पता चला है कि जब बच्चे माता के गर्भ में होते हैं तभी से वे आवाज़ को पहचानने लगते है। वे आवाज़ के प्रति सेन्सिटिव होते हैं और शब्दों को आत्मसात करने लगते हैं। जिन बच्चों ने बचपन में कहानियां सुनी हैं, उनमें अपने आप ही सुनने का कौशल पैदा हो जाता है और यह उनके व्यवहार में साफ दिखता है, विशेष रूप से कक्षाओं में जब वे अच्छे श्रोता कहलाते हैं क्योंकि एक बार कही बात उन्हे याद रह जाती है। इसमें कहानियों को सुनने की आदत का बहुत बड़ा योगदान है।
बड़ों द्वारा सुनाई कहानियां बनाम लैपटॉप पर कहानियां : कहानी सुनाने की कला पर नई टेक्नोलॉजी का प्रभाव साफ नज़र आता है। अब पहले जैसी बात नहीं रह गई है जब बच्चे अपनी दादी-नानी को घेर के बैठ जाते थे। अब तो वे बस कम्प्यूटर के सामने बैठ जाते हैं। इस तकनीक ने बच्चों से कल्पनाशक्ति यानी इमेजिनेशन पर रोक सी लगा दी है। बच्चों को जो स्क्रीन पर दिख गया वही उन्होंने सच मान लिया, उसके आगे कुछ सोचा ही नहीं या उन्हे ज़रूरत ही नहीं पड़ी सोचने की क्योंकि टेक्नोलॉजी ने उन्हे स्पून फीडिंग करा दी और बच्चों ने अपनी इमैजिनेशन का उपयोग बंद कर दिया। आज बच्चों का दिमाग बस एक डंपिंग ग्राउंड बन गया है। उन्हें जो दिखा दो वे बस उसी को सही मान कर बैठ जाते हैं।
कहानी सुनाना बच्चों को अपने कल्चर से जोड़कर रखता है : आजकल सभी बच्चे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ते हैं तो जहिर है कि वे अपनी मूल भाषा का उपयोग कम ही कर पाते हैं लेकिन कुछ घरों में आज भी अपनी इस समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए कहानी सुनाने की परंपरा को कायम रखा है। इससे बच्चों में अपनी भाषा के प्रति जिज्ञासा और जागरूकता दोनों बनी रहती है। उनमें अपनी मातृभाषा के प्रति प्रेम विकसित होता है और वे कहानियां सुनने में रुचि दिखाते हैं।
कहानी कुछ सीखने की एक रोचक गतिविधि है : कहानियां बहुत इंटरेक्टिव होती है। एक कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है वैसे-वैसे बच्चे सवाल पूछने लगते हैं। सवाल करना इस बात की निशानी है कि वे आपकी बात सुन रहे हैं। अगर वे सवाल नहीं करते हैं तो उन्हे सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित करें। यह उनकी इमेजिनेशन को विकसित करता है और यह भी कि वह एक बार में सुनकर कितना याद रख लेता है। इससे बच्चे जल्दी सीखते हैं।
आज पूरी दुनिया मीडिया और टेक्नलॉजी से भरी पड़ी है। बच्चा जैसे ही दुनिया में आता है वैसे ही वह कई टीवी चैनलों, इंटरनेट, मोबाइल फोन आदि के बीच फंस जाता है। ये सब तेजी से उनके नाज़ुक मस्तिष्क पर असर करते हैं। आजकल तो बच्चों में पढ़ने की हैबिट ही नहीं रह गई है।
आप अगर अपने बच्चे की सही परवरिश करना चाहते हैं, और चाहते हैं कि आपका बच्चे में दूसरे बच्चों से कुछ अलग हो तो अपने बच्चे के साथ एक हेल्दी इंटरैक्टिव सेशन रखें जिसमें उससे देश, दुनिया, वाइल्ड लाइफ, फिल्म, राजनीति आदि विषयों पर बात करें। उसे जानकार बनाएं और प्रोत्साहित करते रहें।
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हम बचपन में अपने दादा-दादी, नाना-नानी और परिवार के अन्य बड़े सदस्यों से कहानियां सुना करते थे और उन्हें सुनकर बड़े हुए। ... वे बड़े अच्छे दिन थे जब नानी हमें बीरबल की बुद्धि, पांडवों की धार्मिकता, विक्रम और बेताल की कहानियां सुनाया करती थीं