नैनीताल का इतिहास। History of Nainital in Hindi
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नैनीताल एक रमणीय पर्यटन स्थल है। स्कंद पुराण के मानस खण्ड में नैनीताल एक ताल है जिसे त्रि-ऋषि सरोवर कहा जाता था। यहाँ तीन ऋषियों की एक प्रसिद्ध कथा है। ये ऋषि थे-अत्रि, पुलस्त्य और पुलह। जब उन्हें नैनीताल में कहीं जल नहीं मिला तो उन्होंने एक गडढा खोदा और उसे तिब्बत की मानसरोवर झील के जल से भरा। जनश्रुति के अनुसार जो भी मनुय नैनीताल की इस झील में डुबकी लगाता है उसे मानसरोवर के बराबर पुण्य लाभ मिलता है।
ऐसा माना जाता है कि नैनीताल 64 शक्तिफीठों में से एक है। यह वह स्थान है जहाँ सती की आँख गिरी थी जब भगवान शिव उनको जली हुई अवस्था में ले जा रहे थे। इसलिए इस स्थान का नाम नैन-ताल पड़ गया। बाद में इसे नैनीताल कहा जाने लगा। आज नैना देवी के मंदिर में देवी शक्ति की पूजा होती है।
सन् 1814 से 1816 के मध्य ऐंग्लो-नेपाली युद्ध के पश्चात् कुमाऊँ का पहाड़ी क्षेत्र अंग्रेजों के शासनाधीन हो गया था तब उन्होंने 1841 में नैनीताल में हिल स्टेशन बनवाया। यहाँ पर अक्सर भू-स्खलन होते रहते हैं। सन् 1879 में आमला हिल में एक भयंकर भूस्खलन हुआ था जिसमें सैकड़ों लोग मरे थे।
नैनीताल उत्तराखंड में है। यहाँ हम भीम ताल देख सकते हैं जो नैनीताल से 2 कि.मी. की दूरी पर है। यहाँ हम प्रकृति का अनुपम सौंदर्य देख सकत हैं। यहाँ से 23 कि.मी. की दूरी पर सात ताल है 12 कि.मी. की दूरी पर खुरपा ताल है और नकुचिया ताल भी है। यहाँ बहुत ही सुंदर-सुंदर चिड़ियाँ देखने को मिल जाती हैं।
नैनीताल से 120 कि.मी. की दूरी पर कौसानी गाँव है। इसे भारत का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। यहाँ देवदार वृक्षों के घने जंगल हैं। इसके अलावा मध्यम श्रेणी की पहाड़ियाँ भी देखने को मिलती हैं। इन पहाड़ियों की सुंदरता दर्शकों का मन मोह लेती है। यहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त भी देखा जा सकता है। यह दृश्य भी अत्यंत सुंदर तथा मनमोहक होता है।
नैनीताल से 100 कि.मी. की दूरी पर जागेश्वर है यह 12 वाँ ज्योर्तिलिंग है। यहाँ भी प्राकृतिक सौन्दर्य हमारा मन मोह लेता है। इस प्रकार ऩैनीताल और उसेक आसपास का क्षेत्र अति मनोरम एवं सुन्दर है। नैनीताल का भ्रमण करने सैकड़ों पर्यटक प्रतिदिन आते हैं और वहाँ की पहाड़ियों तथा घने जंगलों को अपने कैमरे में कैद करके ले जाते हैं ताकि वे वहाँ की सुंदरता का बार-बार अवलोकन कर सके।
नैनीताल भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक प्रमुख पर्यटन नगर है। यह नैनीताल जिले का मुख्यालय भी है। कुमाऊँ क्षेत्र में नैनीताल जिले का विशेष महत्व है। देश के प्रमुख क्षेत्रों में नैनीताल की गणना होती है। यह 'छखाता' परगने में आता है। 'छखाता' नाम 'षष्टिखात' से बना है। 'षष्टिखात' का तात्पर्य साठ तालों से है। इस अंचल में पहले साठ मनोरम ताल थे। इसीलिए इस क्षेत्र को 'षष्टिखात' कहा जाता था। आज इस अंचल को 'छखाता' नाम से अधिक जाना जाता है। आज भी नैनीताल जिले में सबसे अधिक ताल हैं। इसे भारत का लेक डिस्ट्रिक्ट कहा जाता है, क्योंकि यह पूरी जगह झीलों से घिरी हुई है। 'नैनी' शब्द का अर्थ है आँखें और 'ताल' का अर्थ है झील। झीलों का शहर नैनीताल उत्तराखंड का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। बर्फ़ से ढ़के पहाड़ों के बीच बसा यह स्थान झीलों से घिरा हुआ है। इनमें से सबसे प्रमुख झील नैनी झील है जिसके नाम पर इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा है। इसलिए इसे झीलों का शहर भी कहा जाता है। नैनीताल को जिधर से देखा जाए, यह बेहद ख़ूबसूरत है।