न पुरूषार्थ विना वह स्वर्ग है,
न पुरूषार्थ विना अनवर्ग है ।
न पुरूषार्थ विना क्रियता नही ।
न पुरूषार्थ विना प्रियता कही ।
सफलता वर तुल्य वरो, उठो ।
न जिसमें कुछ पौरूषार्थ करो, उठो ।
।
न जिसमें कुछ पौरूष हो यहाँ
सफलता वह पासकता कहाँ
अपुरूषार्थ भंयकर पाप है,
न उसमें यश है न प्रताप है ।
न कृमि-कीट समान डरो, उठो
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