निर्गुण भक्ति परंपरा में ईश्वर के किस रूप की उपासना की जाती थी? *
Answers
Explanation:
शिव, विष्णु
अमूर्त व निराकार
लक्ष्मी, पार्वती
Answer:
निर्गुण ब्रह्म के उपासक कबीर दास
Explanation:
कबीर दास ऐसे समय में हुए, जब भारतवर्ष में रूढ़िवादिता, साम्प्रदायिकता एवं धार्मिक प्रदर्शन का बोलबाला था। धार्मिक आडम्बरों के कारण सत्य छिप सा गया था। वह सच्चे संत थे। साथ ही वे सच्चे कर्मयोगी भी थे। वे ब्रह्म की उपासना में मगन रहते थे। वे भगवान के ऐसे भक्त थे, जिन्हें भगवान हर घट में दिखलाई पड़ता था। आडम्बर से दूर निगरुण-निराकार ब्रह्म का दर्शन अपने भीतर प्राप्त करते हुए उनकी भक्ति में निमग्न रहते थे। अपने अनुयायियों को धर्म की सही दिशा देते रहते थे। वे कहते थे - ‘कहैं कबीर बिचारि के जाके बरन न गांव । निराकार और निरगुणा है पूरन सब ठांव॥’ उनकी मान्यता थी कि ईश्वर प्राप्ति के लिए सतगुरु की कृपा प्राप्त करना आवश्यक है। सतगुरु ही ऐसा मल्लाह है, जो शिष्य को भवसागर से पार लगा देता है- ‘गुरु की करिए वन्दना भाव से बारम्बार। नाम की नौका से किया जिसने भव से पार॥’