Hindi, asked by agarwalanshika986, 7 months ago

नौरंगिया कविता का मुलभाव क्या हैं ।​

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Answered by rm2757339
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देवी-देवता नहीं मानती, छक्का-पंजा नहीं जानती

ताकतवर से लोहा लेती, अपने बूते करती खेती,

मरद निखट्टू जनख़ा जोइला, लाल न होता ऐसा कोयला,

उसको भी वह शान से जीती, संग-संग खाती, संग-संग पीती

गाँव गली की चर्चा में वह सुर्ख़ी-सी अख़बार की है

नौरंगिया गंगा पार की है ।

कसी देह औ’ भरी जवानी शीशे के साँचे में पानी

सिहरन पहने हुए अमोले काला भँवरा मुँह पर डोले

सौ-सौ पानी रंग धुले हैं, कहने को कुछ होठ खुले हैं

अद्भुत है ईश्वर की रचना, सबसे बड़ी चुनौती बचना

जैसी नीयत लेखपाल की वैसी ठेकेदार की है ।

नौरंगिया गंगा पार की है ।

जब देखो तब जाँगर पीटे, हार न माने काम घसीटे

जब तक जागे, तब तक भागे, काम के पीछे, काम के आगे

बिच्छू, गोंजर, साँप मारती, सुनती रहती विविध-भारती

बिल्कुल है लाठी सी सीधी, भोला चेहरा बोली मीठी

आँखों में जीवन के सपने तैय्यारी त्यौहार की है ।

नौरंगिया गंगा पार की है ।

ढहती भीत पुरानी छाजन, पकी फ़सल तो खड़े महाजन

गिरवी गहना छुड़ा न पाती, मन मसोस फिर-फिर रह जाती

कब तक आख़िर कितना जूझे, कौन बताए किससे पूछे

जाने क्या-क्या टूटा-फूटा, लेकिन हँसना कभी न छूटा

पैरों में मंगनी की चप्पल, साड़ी नई उधार की है ।

नौरंगिया गंगा पार की है।

Answered by eeshkawdia7
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Answer:

mere ko to pta nhi he kisi or ko pat ho to eis

ko bta do

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