Hindi, asked by 36abhishekpatil, 9 months ago

निराला जी की चारित्रिक विशेषताएं लिखिए​

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Answered by anshika08122007
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Explanation:

निराला जी मानवता के पुजारी थे उनमें मानवीय गुण कूट-कूट कर भरे हुए थे उन्हें स्वयं से अधिक दूसरों के अधिक चिंता होती थी खुद निर्धनता में जीवन बिताते रहे पर दूसरों के आथिक दुखों का भार उठाने के लिए सदा तत्पर रहते थे अतिथियों को सदा हाथ पर लिए रहते थे उनके लिए खुद भोजन बनाने और बर्तन मांजने में उन्हें खुशी होती थी। घर में सामान ना होने पर भी अतिथियों के लिए मित्रों से कुछ चीजें मांग लाने मे वह शमॆ नहीं करते थे उनपर उधार इतने थे कि अपने उपयोग की वस्तुएं भी दूसरों को दे देते थे और खुद कष्ट उठाते थे साथी साहित्यकारों के लिए उनके मन में बहुत लगाव था। निराला जी से अन्याय सहन नहीं होता था। इसके विरोध में उनका हाथ और उनकी लेखनी दोनों चल जाते थे। निराला जी आचरण से क्रांतिकारी थे। वे किसी चीज का विरोध करते हुए कठिन परिस्थितियों का सामना करते थे। पर उसमें द्वेष की भावना नहीं होती थी ।निराला जी के प्रशंसक तथा आलोचक दोनों थे कुछ लोग जहां उनकी उदारता की प्रशंसा करते थे। वहीं कुछ लोग उनके उद्धत व्यवहार की निंदा करते नहीं थकते थे ।निराला जी अपने युग की विशिष्ट प्रतिभा रहे हैं। उनके सामने आने प्रतिकूल परिस्थितियां आई पर वह कभी हार नहीं मानते थे।

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Answered by khushi365019
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Answer:

निराला जी मानवता के पुजारी थे। उनमें मानवीय गुण कूट कूट कर भरे हुए थे। उन्हें स्वयं से अधिक दूसरों की अधिक चिंता होती थी। खुद निर्धनता में जीवन बिताते रहे, पर दूसरों के आर्थिक दुखों का भार उठाने के लिए सदा तत्पर रहते थे। आतिथ्य करने में उनका जवाब नहीं था । अतिथियों को सदा हाथ पर लिये रहते थे। उनके लिए खुद भोजन बनाने और बर्तन माँजने में उन्हें हर्ष होता था। घर में सामान न होने पर अतिथियों के लिए मित्रों से कुछ चीजें माँग लाने में शर्म नहीं करते थे। उदार इतने थे कि अपने उपयोग की वस्तुएँ भी दूसरों को दे देते थे और खुद कष्ट उठाते थे।

साथी साहित्यकारों के लिए उनके मन में बहुत लगाव एक बार कवि सुमित्रानंदन पंत के स्वर्गवास की झूठी खबर सुनकर वे व्यथित हो गए थे और उन्होंने पूरी रात जाग कर

बिता दी थी।

निराला जी पुरस्कार में मिले धन का भी अपने लिए उपयोग नहीं करते थे। अपनी अपरिग्रही वृत्ति के कारण उन्हें मधुकरी खाने तक की नौबत भी आई थी। इस बात को वे

बड़े निश्छल भाव से बताते थे।

उनका विशाल डील-डौल देखने वालों के हृदय में आतंक पैदा कर देता था, पर उनके मुख की सरल आत्मीयता इसे

दूर कर देती थी।

निराला जी से अन्याय सहन नहीं होता था। इसके विरोध में उनका हाथ और उनकी लेखनी दोनों चल जाते थे।

निराला जी आचरण से क्रांतिकारी थे। वे किसी चीज का विरोध करते हुए कठिन चोट करते थे। पर उसमें द्वेष की

भावना नहीं होती थी।

निराला जी के प्रशंसक तथा आलोचक दोनों थे। कुछ लोग जहाँ उनकी नम्र उदारता की प्रशंसा करते थे, वहीं कुछ लोग उनके उद्धत व्यवहार की निंदा करते नहीं थकते थे। निराला जी अपने युग की विशिष्ट प्रतिभा रहे हैं। उनके सामने अनेक प्रतिकूल परिस्थितियाँ आईं पर वे कभी हार नहीं माने।

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