'निराला' के काव्य की विशेषताएँ
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निराला जी लगातार भाषा से जलते रहे उन्होंने भाषा को अनुभूति से जोडा शब्द की आत्मा से तादात्म्य स्थापित किया। उनके काव्य प्रयोगों की विविधता और मौलिकता ने अनेक काव्य आयाम को जन्म दिया और एकही स्तर पर विविध भाषा प्रयोग कर सके। भाषा के प्रति कितनी उत्सुकता, जिज्ञासा सर्जनात्मक काकी आदमी शक्ती हीच कवी मी पाई जाती है उतनी अन्य किसी। छायावादी कवि में नहीं। निराला जी के शब्दों की कुल जीवनी शक्ति से अपने संवेदना का तादात्म्य बनाकर सार्थक शब्दों की खोज उन्हें पूरी तरह से रचना में उतार लाते हैं। भाव के आवेग के साथ उनका पूरा जीवन घुल मिल जाता है और जो काव्य रचना होती है वह निराला की पूरी जीवन शक्ति का संश्लेष जाती है। भाव के अनुसार भाषा और लय का निर्वाह करने वाले निराला प्रचंड प्राण शक्ति, दुर्दमनीय जिजीविषा तथा सूक्ष्म संवेदन के कवि है। रे मनुष्य और सृष्टि के मूल तक जाकर रस ग्रहण करते हैं और भिक्षुक विधवा तोड़ती पत्थर जैसी रचनाओं द्वारा अपने भावों का मार्जन करते हैं। निराला जी संवेदना को लेकर भाषा से जुड़ते हैं वह मानवीय अस्तित्व को उसकी सघनता और जटिलता में उदगीर्ण करने वाली होती है। इस प्रकार आत्म संघर्ष की मन स्थितियों के जितने आवर्त निराला में दिखाई देते हैं उतने अन्य किसी कवि में देखने को नहीं मिलती। इसलिए उनकी काव्य भाषा छायावादी कवियों में सबसे अलग रूप से प्रमुखता से उभर कर आती है।