निराशा, पिटने का भय और उद्देग से रोने का उफान आता था। पलकों के ढकने भीतरी भावों को रोकने का प्रत्यन करते थे, पर कपोलों पर आँसूं दुलक जाते थे --इस पंक्ति का अर्थ बताइए। (आशय स्पष्टीकरण )
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मेरे ख्वाहिश की इंतहा नहीं होती 2 गज जमीन चाहिए दो गज कफन के बाद और रोने रोते रोते हंसना सीखो और गाते गाते जिंदगी को पिता राशि को सुख शांति से जियो और दूसरों पर मत चलाओ और अपना दुख को बुलाओ और दूसरों को अपना
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