निराशा से आशा की ओर पर निबंध
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heya Mate....
हमें अच्छाई, धर्म, प्रभु कृपा, प्रभु दया के प्रति निराशावादी कतई नहीं होना चाहिए क्योंकि इतिहास में ऐसे कई प्रसंग हैं जब बुराई ने अपनी जडे इतनी मजबुत कर ली, इतनी फैला ली की धर्म-कर्म, आस्था के सभी द्वार बंद कर दिये । उदाहरण स्वरूप हिरणाकश्यपु और रावण को ही लेवें । दोनों ने आसूरी राज्य स्थापित किया और अच्छाई का पतन हुआ, धर्म का पतन हुआ और अधर्म और बुराईयों ने अपने पैर पसारे । इन दोनों असुरों ने यहाँ तक की खुद को परमात्मा की तरह शक्तिशाली बता खुद की पूजा भी करवाना प्रारंभ कर दिया था और धर्म के सभी द्वार बंद कर दिये थे ।
इसलिए सामाजिक जीवन में बुराई को देखते हुये, बुराई के बीच रहते हुये भी हमें निराशावादी नहीं होना चाहिए या बुराई में लिप्त नहीं होना चाहिए । यहाँ श्रीरामचरितमानस के एक पात्र श्री विभिषण जी का उदाहरण सटिक बैठता है । बुराईयों के बीच रहकर भी धर्म के पथ पर चलने के कारण वे प्रभु के प्रिय बने और अखण्ड लंका का राज्य प्राप्त किया । चाहते तो विभिषण जी भी कुम्भकरण की तरह बुराई (रावण) का साथ दे सकते थे । विभिषण जी की अग्नि परीक्षा तब थी जब सब कुछ जानने वाले प्रभु ने लीला में उनसे रावण को मारने का भेद पुछा और बिना संकोच विभिषण जी ने रावण के नाभी में अमृत होने का रहस्य बताया । विभिषण जी जानते थे कि यह रहस्य बताने के बाद रावण की मृत्यु निश्चित है । पर उन्होंने बताया और वह भी बेहिचक । प्रभु ने सब कुछ जानते हुये भी परीक्षा लेने हेतु पुछा था । अधर्म का साथ न देकर धर्म का साथ देने की यह सबसे बड़ी परीक्षा थी और विभिषण जी उर्त्तीण हुये । यही कारण था की वे सदैव प्रभु के प्रिय बने रहे । बुराई का, अधर्म का साथ देते तो विभिषण जी की गति भी कुम्भकरण, मेघनाथ की तरह होती । अच्छाई का, धर्म का साथ दिया तो लंकापति बन गये ।
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