निष्पादन बजट का इतिहास
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निष्पादन बजट का प्रचलन वित्त प्रशासन में अभी कुछ ही वर्षों से शुरू हुआ है, परन्तु आज यह इसका एक अंग हो गया है। जब हम वित्त प्रशासन में सुधार की बात करते हैं तो निष्पादन बजट का नाम स्वत: ही आ जाता है। निष्पादन बजट परम्परागत बजट से बहुत भिन्न है। परम्परागत बजट जिसे ‘लाइन-आइटम बजट’ भी कहते हैं कर्मचारी, भवन, सज्ज्ाा आदि व्यय की मदों को ध्यान में रख कर बनाया जाता है। इस बजट से इतना ही पता चलता है कि कितना सार्वजनिक धन कर्मचारियों पर खर्च हुआ, कितना अन्य मदों पर। इससे यह ज्ञात नहीं होता है कि सार्वजनिक धन के व्यय से कितनी उपलब्धियां प्राप्त हुर्इं हैं। इसी कमी को निष्पादन बजट पूरा करता है। निष्पादन बजट विशिष्ट उद्देश्यों व कार्यों पर केन्द्रित रहता है। यह बताता है कि कितने कार्य सम्पादित करने का विचार है।
परम्परागत बजट या ‘लाइन-आइटम बजट’ उस काल की देन थी, जब सरकार के कार्य संकीर्ण होते थें अत: सार्वजनिक व्यय कम रहता था, और प्रयत्न भी यही किया जाता था कि कम से कम खर्चा हो। साथ ही, वित्त प्रशासन मध्यम व निम्न श्रेणी के कर्मचारियों को सदैव शंका की दृष्टि से देखता था, तथा इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने नियंत्रण की एक विशाल श्रृंखला उत्पन्न कर ली थी। निश्चय ही, इससे प्रशासन की गति मंद हो गयी पर औपनिवेश्कि शासन को इससे क्यों परेशानी होती।
स्वतन्त्र भारत में औपनिवेशिक उद्देश्य अर्थहीन बन गए। अपनी चतुर्मुखी उन्नति के लिए भारत में पंचवष्र्ाीय योजनाओं का सहारा लिया गया और इन योजनाओं के अन्र्तगत सार्वजनिक व्यय बेतहाशा बढ़ने लगा। इस नयी राजनीतिक परिस्थिति में मितव्ययता तथा उत्तरदायित्व के पुराने विचार महत्वहीन हो गये। वास्तव में इन विचारों से देश की प्रगति में बाधा ही पड़ने लगी, क्योंकि जैसी कहावत है कि पैसा बचाने के चक्कर में रूपया खो देते हैं। ब्रिटिश काल में व्याप्त अविश्वास तथा सन्देह के प्रशासनिक दृष्टिकोण स्वतन्त्र भारत में बाधक सिद्ध होने लगे। आज आवश्यकता यह है कि हम अपने विकास कार्यक्रमों को जल्दी-जल्दी पूरा करें ताकि इनके फल लोगों तक पहुंच सकें। ऐसे समय सन्देह एंव शंका की प्रक्रियाएं उपयोगी सिद्ध नहीं होती।
निष्पादन बजट की परिभाषा सीधी है। इस प्रकार का बजट सार्वजनिक व्यय को कार्यों, प्रोग्रामों तथा कृतियों में प्रकट करता या दिखाता है। इस प्रकार निष्पादन बजट परम्परागत बजट से इस अर्थ में भिन्न है कि परम्परागत बजट केवल यह बताता है कि कितना रूपया कर्मचारियों पर खर्च हुआ, कितना फर्नीचर पर, कितना सज्ज्ाा आदि पर। भारतीय प्रशासकीय सुधार आयोग (1966-1970) के अनुसार निष्पादन बजट सरकारी क्रियाओं को कार्यों, कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं में प्रकट करने की एक प्रक्रिया है। इस प्रकार के बजट का वर्णन सबसे पहले अमेरिका के हूवर कमीशन ने 1949 में किया था। हूवर कमीशन ने सिफारिश की थी कि बजट को कार्यों, क्रियाओं तथा परियोजनाओं की रूपरेखा में होना चाहिए। जब बजट इस भांति बनने लगेगा तो यह स्पष्ट होने लगेगा कि क्या कार्य सम्पादित किये गये हैं या क्या सेवाएं दी जा रही हैं।
निष्पादन बजट, बजट बनाने का एक नया तरीका प्रस्तुत करता है। परम्परागत बजट तो यह बताता है कि कितना खर्चा कर्मचारियों पर हुआ, कितना स्टेशनरी पर, कितना गाड़ियों पर, आदि। इस प्रकार का बजट तो केवल साधनों तक ही अपने को सीमित कर लेता है। मुख्य चीज तो यह है कि कर्मचारियों, स्टेशनरी आदि पर खर्चा किस काम को पूरा करने पर किया गया; अर्थात् सम्पादित होने वाला काम निष्पादन बजट का केन्द्र बिन्दु हो जाता है।
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