निषेधात्मक संवेगों का प्रबंधन क्यों महत्वपूर्ण है? निषेधात्मक संवेगों के प्रबंधन हेतु उपाय सुझाइए।
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संवेग एक ऐसी प्रक्रिया , जिस में मानसिक तथा शारीरिक दोनों प्रकार की प्रक्रियाएँ शामिल है | संवेग के कर्ण व्यक्ति कभी-कभी इतना प्रेरित हो जाता है की वह राष्ट्र ,धर्म,जाती और मानवता के लिए बहुत बड़े-बड़े क्रय करने के लिए तैयार हो जाता है|
संवेग व्यक्ति के व्यवहार में किसी न किसी का अंश अवश्य रहते है | जिस प्रकार खुशबु दिखाई न देने पर फूल दिखाई देता है | उसी प्रकार मानवीय व्यवहार में संवेग व्याप्त रहते है |
संवेग को अनेक तिव्रताओं पर महसूस किया जा सकता है | मनुष्य थोड़ी सी खुशी या उल्लास का थोड़ी शोकाकुलता का अनुभव कर सकता है | बहुत सारे लोग संवेग में संतुलन बनाए रखने में सफल होते है|
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क्या शरीरक्रियात्मक उद्वेलन सांवेगिक अनुभव के पूर्व या पश्चात घटित होता है? व्याख्या कीजिए।
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