नीति आयोग और योजना आयोग में अंतर स्पष्ट कीजिए
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योजना आयोग का गठन वर्ष 1950 में एक निरर्थक संकल्प द्वारा पूर्व यूएसएसआर से प्रेरित होकर किया गया था।
योजना आयोग का मुख्य उद्देश्य देश में उपलब्ध संसाधनों का सही आकलन करते हुए विकास की आवश्यकता के अनुसार पंचवर्षीय योजना का निर्माण और प्राथमिकता के अनुसार संसाधनो का सही आवंटन था।
हालांकि पंचवर्षीय योजनाओं ने भारत का सामाजिक और आर्थिक विकास के साथ ही भारी उद्योग के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, फिर भी योजना आयोग को और व्यावहारिक, प्रगतिशील और आधुनिक जरूरतों के अनुरूप बनाने के लिए 1 जनवरी, 2015 को निरर्थक प्रस्ताव द्वारा इसे नीति आयोग से प्रतिस्थापित कर दिया गया। काफी लम्बें समय से यह विषय विवाद का मुद्दा बना था कि सेंट्रलाइज्ड प्लानिंग के रूप में योजना आयोग अपने चरम पर पहुँच चुका था और अब देश को वर्तमान जरूरतों के अनुरूप एक नए सुधार की आवश्यकता है।
इसी को आधार बनाते हुए नीति आयोग के गठन के साथ योजना आयोग को समाप्त कर दिया गया है जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं -
1. राज्यों का प्रतिनिधित्व नहीं: - योजना आयोग में राज्यों का प्रतिनिधित्व न के बराबर था जिसके कारण नई योजना के निर्माण में राज्य सहयोग की भूमिका में नहीं आ पाए थे। प्रत्येक राज्य को अपनी विशेष परिस्थितियों का बेहतर ज्ञान होता है लेकिन इस जानकारी को योजना के निर्माण में किसी तरह का कोई महत्व नहीं दिया गया था।
2. टॉप टू बॉटम एप्रोच: - योजना आयोग सेंट्रलाइज्ड प्लानिंग पर आधारित था, इसलिए इसके द्वारा सभी योजनाएं केंद्रीय रूप से बनायी जाती थीं जिनकी नोटियन प्रत्येक राज्य को करना होता था। धन के आवंटन के समय भी राज्यों की आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखा गया था और ज्यादातर इसका प्रयोग प्रतिद्वंद्वी राज्यों को परेशान और दण्डित करने के लिए किया गया था। जबकि राज्यों को अपने खर्चों की समझ केंद्र से कहीं बेहतर होती है।
3. वर्तमान आवश्यकता के अनुरूप नहीं: - योजना आयोग में विशेषज्ञों को कोई महत्व नहीं दिया गया था। जिसका वर्तमान युग में बहुत महत्व है। वर्तमान युग की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए नीति आयोग को भारत सरकार के एक थिंक टैंक के रूप में लागू किया गया। जिसमें विशेषज्ञों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
यद्दपि योजना आयोग और नीति आयोग दोनों सलाहकारी संस्थाएं हैं, जो बेहरत नियोजन आवश्यकताओं के लिए सलाह देने का दायित्व निभाती रही हैं, हालांकि, योजना आयोग और नीति आयोग कई आधार पर एक-दूसरे से भिन्नता रखते हैं। भिन्नता के प्रमुख बिंदु निम्नलिखितवत हैं -
योजना आयोग बनाम नीति आयोग
क्रं.सं. आधार योजना आयोग नीति आयोग
1 प्रकृति राज्य की सेवा बाजार सेवा
2 नियोजन युक्तियाँ ऊपर से नीचे की ओर का दृष्टिकोण नीचे से ऊपर की ओर का दृष्टिकोण
3 सहकारी संघवाद राज्यों का प्रतिनिधित्व नहीं केंद्र और राज्यों का प्रतिनिधित्व
4 क्षेत्रीय मुद्दा कोई परिषद नहीं क्षेत्रीय परिषद का प्रावधान
5 वित्त आवंटन वित्त आवंटन का कार्य करता था केवल सलाहकारी भूमिका में
6 विशेषज्ञों को स्थान कम महत्व विशेषज्ञों को स्थान
प्रकृति: - जहां योजना आयोग राज्य अनिश्चित अर्थव्यवस्था से संबंधित था, वहीं नीति आयोग का गठन बाजार की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए और अहर प्रेरित अर्थव्यवस्था के अनुरूप किया गया है।
नियोजन युक्तियां: - योजना आयोग, योजना निर्माण हेतु ऊपर से नीचे की ओर के दृष्टिकोण अपनाता था, जबकि नीति आयोग में नीचे से ऊपर की ओर के दृष्टिकोण को गया है।)जिसमें राज्यों के सहयोग की वृद्धि हुयी है।
सहकारी संघवाद: - योजना आयोग पूर्णतः केंद्र की संस्था थी जिसमें राज्यों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था, लेकिन नीति आयोग के सहकारी संघवाद के सिद्धांत पर आधारित होने के कारण इसमें केंद्र और राज्य दोनो का समान प्रतिनिधित्व है। राज्यों का प्रतिनिधित्व होने के कारण यह राष्ट्रीय विकास परिषद के रूप में कार्य करने में समर्थ है।
क्षेत्रीय मुद्दा: - नीति आयोग में क्षेत्रीय मुद्दे या दो या अधिक राज्यों के बीच के मुद्दों को सुलझाने के लिए क्षेत्रीय परिषद का भी प्रावधान है। जिसके सदस्य सभी राज्यों / संघ राज्यों के मुख्यमंत्री / उप-राज्यपाल होंगे, जिससे ये संघवाद का भी रूप प्रदर्शित करता है। योजना आयोग में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं था।
वित्त आवंटन: - जहां वित्त आवंटन में योजना आयोग की प्रमुख भूमिका थी, वहीं नीति आयोग केवल एक सलाहकारी संस्था के रूप में कार्य करता है।
विशेषज्ञों को स्थान: - विशेषज्ञों को योजना आयोग में कम महत्व प्रदान किया गया था, लेकिन नीति आयोग की संरचना में विशेषज्ञों को विशेष स्थान दिया गया है, जो इसे और व्यवहारिक बनाता है।
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