नैतिक मूल्य क्या हैं? और इन्हें सिखाया जाना क्यों जरूरी है?
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श्रूयतां धर्मसर्वस्वं, श्रुत्वा चैवावधार्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत्।।
इसका अर्थ है की धर्म का सार सुनो, और उसे धारण कर लो की जो अपने अनुकूल न हो वैसा आचरण दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए।
नैतिक मूल्यों का अर्थ और महत्व समझने के लिए इससे अच्छा और कोई उदाहरण नहीं मिलेगा।
क्या आपको अच्छा लगेगा यदि आपका मित्र आपको धोखा दे? यदि नहीं तो आप भी अपने मित्र को देखा न दीजिये।
क्या आप प्रसन्न होंगे यदि आपके प्रति अपशब्दों का प्रयोग करे, तो आप भी अपशब्दों का प्रयोग न कीजिये।
एक स्वस्थ समाज मैं नैतिक मूल्यों की स्थापना समाज को स्थिर रखने के लिए की गयी है जहाँ की सभी के लिए सामान अवसर उपलब्ध हैं और किसी के साथ भी अन्याय नहीं होता है।
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