Hindi, asked by prasanna4359, 1 year ago

नैतिक शिक्षा पर निबन्ध | Write an essay on Moral Value in Hindi

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Answered by stnaaz0786gmailcom
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नैतिक शिक्षा पर निबन्ध | Essay on Moral Value in Hindi!

मानव को सामाजिक प्राणी होने के नाते कुछ सामाजिक मर्यादाओं का पालन करना पड़ता है । समाज की इन मर्यादाओं में सत्य, अहिंसा, परोपकार, विनम्रता एवं सच्चरित्र आदि अनेक गुण होते हैं ।

इन गुणों को यदि हम सामूहिक रूप से एक नाम देना चाहे तो ये सब सदाचार के अन्तर्गत आ जाते है । सदाचार एक ऐसा व्यापक शब्द है जिसमें समाज को लगभग सभी मर्यादाओं का पालन हो जाता है । अत: सामाजिक व्यवस्था के लिए सदाचार का सर्वाधिक महत्त्व है ।

सदाचार शब्द यौगिक है, दो शब्दों से मिलकर बना है – सत् + आचार जिसका भावार्थ है उत्तम आचरण अर्थात जीवन यापन की वह पद्धति जिसमें सत का समन्वय है, जिसमें कहीं भी ऐसा न हो जो असत् कहा जा सके । सदाचार संसार का सर्वोत्कृष्ट पदार्थ है । विद्या, कला, कविता, धन अथवा राजस्व कोई भी सदाचार की तुलना नहीं कर सकता । सदाचार प्रकाश का अनन्त स्त्रोत है ।

विश्व के समस्त गुण सदाचार से निहित हैं । सदाचार से शरीर स्वस्थ, बुद्धि निर्मल और मन प्रसन्न रहता है । सदाचार हमें मार्ग दिखलाता है । सदाचार आशा और विश्वास का विशाल कोष है । सदाचारी मनुष्य संसार में किसी भी कल्याणकारी वस्तु को प्राप्त कर सकता है ।

सदाचार से ही उत्तम आयु, मनचाही संतान तथा असंचय धन आदि की प्राप्ति होती है । सदाचार के बिना मनुष्य का जीवन खोखला है जिसके कारण वह कभी उन्नति नहीं कर सकता है । चरित्र ही सदाचार व्यक्ति की शक्ति है ।

किसी भी महान से महान कार्य की सिद्धि बिना सदाचार अथवा उत्तम चरित्र के संभव नहीं । जो वास्तविक सफलता सदाचारी प्राप्त कर सकता है उसे दुराचारी मानव कदापि प्राप्त नहीं कर सकता है । सदाचार का पालन न करने वाला व्यक्ति समाज में घृणित माना जाता है । दुराचारी पुरुष की संसार में निन्दा होती है । वह निरन्तर व्याधिग्रस्त एवं रोगासक्त रहता है तथा उसकी आयु भी कम होती है ।

दुराचारी मानव अपना, अपने समाज और अपने राष्ट्र किसी का भी उत्थान नहीं कर सकता है । सदाचार विहीन मनुष्य का जीवन पाप-कर्म में होने के कारण सुख-शान्ति रहित एवं अपमानजनक होता है । ऐसे लोगों को इस लोक में चैन नहीं मिलता तथा परलोक में भी सदगति प्राप्त नहीं होती है ।





‘आचार’ शब्द तो इतना महत्त्वपूर्ण है, सहज ही नहीं भुलाया जा सकता । सदाचार आम या जामुन का फल नहीं है जिसे किसी भी वृक्ष से तोड़ लिया जाय अथवा बाजार से खरीद लिया जाये । सदाचार आचरण की वस्तु है, वाणी की नहीं । सदाचार की भाषा मौन है, वह बोलता नहीं । सम्पूर्ण जीवन की आधारशिला विद्यार्थी जीवन है । अत: इस जीवनरूपी नींव को विनम्रता, परोपकार, सच्चरित्रता, सत्यवादिता आदि से पुष्ट होना चाहिये ।

सदाचार के अभ्यासार्थ हमें बुरे वातावरण से सर्वदा बचना चाहिए, क्योंकि बुरे वातावरण में रहकर हम कितना ही प्रयास करे उसके प्रभाव से बचना कठिन है । सदाचार के हेतु हमें अपना अधिक से अधिक समय महापुरुषों की आत्मकथा, गीता, रामायण, श्रीमद्‌भागवत, कुरान शरीफ, बाईबिल, त्रिपिटक आदि धार्मिक ग्रन्थों के पठन-पाठन तथा सत्संगति में व्यतीत करना चाहिए ।

स्पष्ट है कि सदाचार का पालन स्वयं की, समाज की और राष्ट्र की उन्नति के लिये परमावश्यक है । सच्चरित्रता ही सदाचार है, जिसकी प्रतिक्षण रक्षा करना हमारा परम, पवित्र कर्तव्य है । सदाचार मानव को देवत्व प्रदान करता है । इस सदाचारण से युक्त पृथ्वी ही स्वर्ग है ।
Answered by coolthakursaini36
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                                “नैतिक शिक्षा की अनिवार्यता”

भूमिका:-> व्यवहारिक ज्ञान अर्थात बड़ों के प्रति, छोटों के प्रति, गुरुजनों के प्रति   सद्व्यवहार, तथा कर्तव्य का बोध और धर्म का आचरण करना ही नैतिक शिक्षा है। आज संसार को संस्कार वान व्यक्ति की सख्त जरूरत है

आज का विद्यार्थी:->आज हमारी शिक्षा पद्धति इस तरह से बन चुकी है कि विद्यार्थियों को केवल अक्षर ज्ञान ही दिया जाता है। आज विद्यार्थियों में संस्कारों की कमी है जिस कारण समाज में असमानता फैल रही है। बच्चे मां बाप की आज्ञा की अवहेलना करते हैं। अपने गुरुजनों का सम्मान नहीं करते। जिस देश के बच्चों में इस तरह की भावना आ जाती है उसका पतन होना निश्चित है।

नैतिक शिक्षा की अनिवार्यता:-> आज नैतिक शिक्षा की बहुत ही सख्त जरूरत है यदि बच्चे संस्कारवान होंगे तो वे अपना हर कर्तव्य ईमानदारी के साथ कर सकेंगे। और देश को उन्नति के शिखर की ओर ले जायेंगे। घर में अपने वृद्ध माता पिता की सेवा करेंगे और लोगों के साथ सद व्यवहार करेंगे। बच्चों में संस्कार देने की जिम्मेदारी माता-पिता के साथ साथ अध्यापक की भी है। हमें समाज में इस तरह का माहौल बनाना चाहिए कि कोई भी बच्चा चोरी व्यभिचारी तथा दुराचारी ना बने।

भारत की प्रतिष्ठा:-> भारत सदियों से आदर्शवादी के रूप में जाना जाता है जिनमें से मुख्य रूप से श्री राम और योगीराज श्री कृष्ण का नाम आता है हमें भगवान श्री राम के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए तथा समाज में मर्यादा पूर्वक जीवन व्यतीत करना चाहिए। बच्चों को धार्मिक पुस्तकें पढ़नी चाहिए जिनमें से मुख्य रूप से रामायण और श्रीमद भगवत गीता हैं I

उपसंहार:-> हमें दूसरी भाषाओं का भी अध्ययन करना चाहिए । दूसरों की संस्कृति के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए। लेकिन हमें कभी भी अपनी संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए क्योंकि जो व्यक्ति अपनी संस्कृति को भूल जाता है ।उसका विनाश निश्चित होता है।


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