नाटक की कहानी अपने शब्दों में लिखिए
Answers
Explanation:
(क) मोहल्ले के बच्चों ने मिल-जुलकर फालतु पड़े एक छोटे से सार्वजनिक मैदान में दूब व फूल-पौधें लगाए थे। वहीं एक मंच भी बना लिया था।
(ख) पर्दे की आड़ में खड़े अन्य साथी मन ही मन राकेश की तुरतबुद्धि की प्रशंसा कर रहे थे क्योंकि उसने बिगड़े हुए नाटक को सम्भाल लिया था। सभी समझे कि नाटक में नाटक की कठिनाइयाँ बताई गई हैं। सभी दर्शक प्रशंसा करते चले गए।
(ग) नाटक बिना तैयारी के नहीं हो सकता क्योंकि नए कलाकार मंच पर आकर डर जाते हैं। अच्छे-अच्छे कलाकार भी बिना रिहर्सल के घबरा जाते हैं। उन्हें पता नहीं चलता कब, क्या, कहाँ और कैसे बोलना है। रिहर्सल में नाटक की इन्हीं महत्वपूर्ण बातों की चर्चा होती है।
Answer:
अभिनय आरंभ होने के पहले जो क्रिया (मंगलाचरण नांदी) होती है, उसे पूर्वरंग कहते हैं। पूर्वरंग, के उपरांत प्रधान नट या सूत्रधार, जिसे स्थापक भी कहते हैं, आकर सभा की प्रशंसा करता है फिर नट, नटी सूत्रधार इत्यादि परस्पर वार्तालाप करते हैं जिसमें खेले जानेवाले नाटक का प्रस्ताव, कवि-वंश-वर्णन आदि विषय आ जाते हैं। नाटक के इस अंश को प्रस्तावना कहते हैं। जिस इतिवृत्त को लेकर नाटक रचा जाता है उसे 'वस्तु' कहते हैं। 'वस्तु' दो प्रकार की होती है—आधिकारिक वस्तु और प्रासंगिक वस्तु। जो समस्त इतिवृत्त का प्रधान नायक होता है उसे 'अधिकारी' कहते हैं। इस अधिकारी के संबंध में जो कुछ वर्णन किया जाता है उसे 'आधिकारिक वस्तु कहते हैं; जैसे, रामलीला में राम का चरित्र। इस अधिकारी के उपकार के लिये या रसपुष्टि के लिये प्रसंगवश जिसका वर्णन आ जाता है उसे प्रांसगिक वस्तु कहते हैं; जैसे सुग्रीव, आदि का चरित्र। 'सामने लाने' अर्थात् दृश्य संमुख उपस्थित करने को अभिनय कहते हैं। अतः अवस्थानुरुप अनुकरण या स्वाँग का नाम ही अभिनय है। अभिनय चार प्रकार का होता है— आंगिक, वाचिक, आहार्य और सात्विक। अंगों की चेष्टा से जो अभिनय किया जाता है उसे आंगिक, वचनों से जो किया जाता है उसे वाचिक, भेस बनाकर जो किया जाता हैं उसे आहार्य तथा भावों के उद्रेक से कंप, स्वेद आदि द्वारा जो होता है उसे सात्विक कहते हैं। नाटक में बीज, बिंदु, पताका, प्रकरी और कार्य इन पाँचों के द्वारा प्रयोजन सिद्धि होती है।