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नाटय के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी की समीक्षा कीजिए​

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ध्रुवस्वामिनी नाटक की तात्विक समीक्षा ( Dhruvswamini Natak Ki Tatvik Samiksha )

27/05/2021 by Dr. Charan

ध्रुवस्वामिनी जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित एक ऐतिहासिक नाटक है | इस नाटक में सम्राट समुद्रगुप्त के पश्चात के उस काल को दिखाया गया है जिसमें गुप्त वंश की बागडोर एक निर्बल व कायर शासक रामगुप्त के हाथों में आ गई थी और गुप्त वंश पतन की ओर अग्रसर था | यद्यपि सम्राट समुद्रगुप्त अपने छोटे पुत्र चंद्रगुप्त को उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे लेकिन अमात्य शिखर स्वामी के सहयोग से एक षड्यंत्र द्वारा ज्येष्ठ पुत्र रामगुप्त ने राजसत्ता हथिया ली |

जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित अन्य नाटकों की भांति ध्रुवस्वामिनी भी एक उत्कृष्ट ऐतिहासिक नाट्य कृति है |

नाटक के तत्वों के आधार पर ‘ध्रुवस्वामिनी’ की समीक्षा ( Natak Ke Tattvon Ke Aadhar Par ‘Dhruvsvamini’ Ki Samiksha )

कतिपय विद्वानों ने नाटक के छह अनिवार्य तत्व माने हैं –

1.कथावस्तु या कथावस्तु

पात्र और चरित्र चित्रण

3. संवाद व कथोपकथन

4. देशकाल व वातावरण

5.अभिनेयता

6. उद्देश्य

नाटक के इन अनिवार्य तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा इस प्रकार की जा सकती है :-

1️⃣ कथावस्तु

कथावस्तु किसी भी नाटक का मूल आधार होता है जिसके आधार पर संपूर्ण नाटक का खाका खींचा जाता है | ध्रुवस्वामिनी ( Dhruvswamini ) नाटक की कथावस्तु के आधार पर समीक्षा करने से पूर्व इसके संक्षिप्त कथासार को जानना आवश्यक है |

ध्रुवस्वामिनी नाटक तीन अंकों में विभक्त है | प्रथम अंक रामगुप्त के शिविर में आरंभ होता है, दूसरा अंक शकराज के शिविर में आरंभ होता है तथा तृतीय व अंतिम अंक का पर्दा शकदुर्ग के भीतरी प्रकोष्ठ में उठता है और वहीं ‘ध्रुवस्वामिनी’ नाटक का अंत होता है |

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