Hindi, asked by rajendrak167, 5 months ago

निवार्य है।
पुरा एकलव्यः नामकः एकः बालकः आसीत्। सःनिषादराजस्य हिरण्यधनुषः पुत्रः आसीत्। तस्मिन् काले
होण: नामकः धनुर्वेदस्य महान् कुशलः शिक्षकः आसीत्। तस्य धनुर्विदयां निपुणतां श्रुत्वा बहवः राजकुमाराः
धनुर्विदयां गृहीतुं तस्य पार्श्वे आगच्छन्। तस्य कौशलं श्रुत्वा एकलव्यः अपि तस्य अन्तिकं समागत्य
निवेदयत्- 'गुरुदेव। माम् अपि शिष्यत्वेन स्वीकरोतु। किन्तु द्रोणः राजपुत्रान् एव स्वीकरोति स्म।
तत्पश्चात् खिन्नः एकलव्यः स्वगृहम् आगच्छत्। सः वने गुरोः द्रोणाचार्यस्य एकां मृत्तिका प्रतिमा रचयित्वा
तस्याः सम्मुखे बाणसंचालनस्य अभ्यासम् अकरोत्। अल्पकाले सः बाणसञ्चालने परमप्रवीणः अभवत्।
तस्मिन् समये कौरवपाण्डवाः अपि मृगयार्थं तत्र आगच्छन्। तैः सह एकः कुक्कुरः आसीत्। कुकुर
मलिनवसनं एकलव्यं दृष्ट्वा भषितुम् आरभते। तदा एकलव्यः तस्य कुक्कुरस्य मुखे सप्त शरान् युगपत्
मुमोच। अनेन कुक्कुरस्य मुखं बाणपूर्णं अभवत्।
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Answered by vadghuleasha
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Answer:

बहोत साल पेहले एकलव्य नाम का एक बालक था।वह निषाद राजा का हिरण्य धनुष पुत्र था। उन दिनो द्रोण नाम के धनुर्विद्या के महान तथा कुशल शिक्षक थे।उनकी धनुर्विद्या की निपुनता सूनके बहोतसे राजकुमार धनुर्विद्या सिकने उनके घर आते थे। उनका कौशल्य सूनके एकलव्य भी उनके पास आया और गुरूदेव से बोला गुरुदेव मुझे भी आपका शिष्य बनालो परंतु द्रोण बोले मे सिर्फ राजपुत्र न को ही सिकता हू। उसके बाद एकलव्य दुःखी होकार अपने घर लौटा। एकलव्य ने वन मे गुरू द्रोणाचार्य का एक मिटी का पुतला बनया। उस पुतले के सामने धनुर्विद्या का अभ्यास शूरु किया। थोडे ही दिनो मे वह उसमे निपुण हो गया। उसी नगरी मे कौरव और पांडव शिकार करणे आये थे। उनके पास कुत्ते थे। वह कुत्ते एकलव्य को देख के भोकने लगे।तभि एकलव्य ने कुत्ते के मुख मे सात बाण छोडे।कुत्ते का मुख बणो से भरगाय। इस प्रकार कुत्ते का मुख पुरा बंद हो गया।

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Answered by sethsimran76
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