न्यू किलियर जाल का चित्र
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भारी जल, हाइड्रोजन के समस्थानिक ड्यूटीरियम का आक्साइड हैं। इसमे ०.०१४ % साधारण जल होता हैं। रसायन की भाषा में हाइड्रोजन ऑक्साइड (H2O, अणुभार 18) है। इस के एक अणु में ऑक्सीजन का एक परमाणु हाइड्रोजन के दो परमाणुओं से सह संयोजी बन्ध से जुड़ा रहता है। हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक (आइसोटोप) पाये जाते हैं, अन्य दो ड्यूटीरियम और ट्रिटियम कहलाते हैं, जिनका परमाणु भार क्रमशः 2 और 3 होता है। सामान्यत: प्राकृतिक जल में जल के ऐसे अणुओं की संख्या चार करोड़ दस लाख और एक के अनुपात में होती है जिसमे हाइड्रोजन का दूसरा समस्थानिक पाया जाता है। इस प्रकार के जल के अणु को D2O (अणुभार 20) से निरूपित किया जाता है। ऐसा जल जिसमे 99 प्रतिशत से अधिक अणु D2O के होते हैं उसको भारी जल के नाम से जाना जाता है, इसका घनत्व (1.1044) सामान्य जल (1.0) से अधिक होता है।
भारी जल का व्यावसायिक उत्पादन मुख्यतः रासायनिक विधि से किया जाता है जिसमे गतिज समस्थानिक प्रभाव (Kinetic Isotope Effect) तकनीक का प्रयोग होता है। भारी जल का मुख्य उपयोग नाभिकीय संयन्त्रों में होने वाली नाभिकीय विघटन क्रियाओं के दौरान उत्पन्न न्यूट्रॉन को अवशोषित करने के लिये मंदक के रूप में होता है। जिससे की नाभिकीय ऊर्जा का नियन्त्रित उत्पादन और शान्तिपूर्ण उपयोग किया जा सके। यहाँ भारी जल के स्थान पर साधारण जल का भी प्रयोग किया जा सकता है लेकिन उस परिदृश्य में संयन्त्र में यूरेनियम 235 का ही प्रयोग किया जा सकता है, क्योंकि साधारण जल भारी जल की अपेक्षा अधिक न्यूट्रॉन अवशोषित कर लेता है।
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