न्यायिक समीक्षा की प्रणाली कँहा से उत्पन्न हुई....
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न्यायिक समीक्षा की प्रणाली की उत्पति सामान्यतः संयुक्त राज्य अमेरिका से मानी जाती है
न्यायिक समीक्षा: विधायिका और कार्यपालिका के कार्यों के व्यापक अधिकार क्षेत्र के साथ भारत की एक स्वतंत्र न्यायपालिका है। न्यायिक समीक्षा को सिद्धांत के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसके तहत न्यायपालिका द्वारा विधायी और कार्यपालिका के कार्यों की समीक्षा की जाती है। इसे आम तौर पर स्वतंत्र न्यायपालिका की बुनियादी संरचना के रूप में जाना जाता है (इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण मामला)।
न्यायिक समीक्षा को विधायी कार्यों की समीक्षा, न्यायिक फैसलों की समीक्षा, और प्रशासनिक कार्रवाई की समीक्षा के रूप में तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है। इसलिए शक्तियों के संतुलन को बनाए रखना, मानव अधिकारों, मौलिक अधिकारों और नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकारों की रक्षा को सुनिश्चत करना भी जजों (न्यायधीशों) का कर्तव्य है।
विधायी कार्यों की न्यायिक समीक्षा का अर्थ वह शक्ति है जो विधायिका द्वारा पारित कानून को संविधान में निहित प्रावधानों और विशेषकर संविधान के भाग 3 (पढ़ने का सिद्धांत) के अनुसार सुनिश्चित करती है। निर्णयों की न्यायिक समीक्षा के मामले में, उदाहरण के लिए जब एक क़ानून को इस आधार पर चुनौती दी गयी है कि इसे बगैर किसी प्राधिकरण या अधिकार से विधायिका द्वारा पारित किया गया है, विधायिका द्वारा पारित किया गया कानून वैध है या नहीं, इसके बारे में फैसला लेने का अधिकार अदालत के पास होता है। इसके अलावा हमारे देश में किसी भी विधायिका के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं है कि वे अदालतों द्वारा दिए गए निर्णय की अवज्ञा या उपेक्षा कर सकें।
अदालतों के पास न्यायिक समीक्षा की व्यापक शक्तियां हैं, इन शक्तियों का बड़ी सावधानी और नियंत्रण के साथ प्रयोग किया जाता है।