Economy, asked by nargis15091999, 7 months ago

नियमित वेतन भोगी कर्मचारी के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों से महिला श्रमिकों का प्रतिशत शहरी क्षेत्रों की तुलना में कम है ऐसा क्यों कारण बताओ​

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Answered by mahawirsingh15
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इस क्षेत्र में वे सारे संस्थान आते हैं जो 1948 के फैक्टरी एक्ट के अंतर्गत नहीं आते हैं अर्थात (अ) जो बिजली का उपयोग नहीं करते और (20 तक) अधिक लोगों को काम देते हैं। इस ‘अवस्थित’ या अनौपचारिक’ उद्योग है, इसलिए इनसे सम्बन्धित तथ्य इकट्ठा करना बहुत मुशिकल है। परन्तु (उद्योगवार या क्षेत्रवार) फुटकर संस्थानों का थोड़ा गहरा अध्ययन करने से समान्य परिस्थिति की एक झलक सामने आ सकती है। ऐसे कई अध्ययनों से इस तथ्य की पुष्टि हुई है कि इन क्षेत्रों में बच्चों का बेहद शोषण होता है और बाल श्रम का प्रमाण भी बहुत अधिक है, जैसे-उनके काम की मजदूरी लगभग न के बराबर होती है, उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में, कभी-कभी तो बड़ी ही खतरनाक स्थिति में काम करना पड़ता है, काम का और सोने का स्थान प्रायः एक ही होता है, उनके साथ बड़ा ही दुर्व्यवहार किया जाता है। फिर भी काम से हटा दिए जाने की आशंका के कारण वह सब उन्हें सहना पड़ता है। उन बच्चों की शारीरिक और मानसिक सहिष्णुता की पूरी-पूरी परीक्षा हो जाती है। (देखे सुमंत बनर्जी, चाइल्ड लेबर इन इंडिया, 1979’ चाईल्ड लेबर इन डेल्ली/बाम्बे, इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर रीजनल डेवलपमेंट स्टडीज ,1979. स्मितु कोठारी, चाइल्ड लेबर इन शिवकाशी, ई.पी. डबल्यू, 198 3, आदि)

इस क्षेत्र में बच्चों को काम देने वाले संस्थानों के आकार-प्रकार और उनके काम अनेक प्रकार के हैं, जिनमें से कुछ ये हैं घरेलू कामकाज, मोटर वर्कशाप, परचून की दुकानें, साईकिल मरम्मत, छपाई प्रेस और सभी प्रकार की छोटी दुकानें। (लीला दुवे 1881-८४) इस क्षेत्र के कामों को मुख्यतः तीन श्रणियों में बांटा जा सकता है।

- दूसरों के लिए काम करना।

- घरेलू इकाइयों/उद्योगों में काम

- अपने लिए काम करना (स्वयं रोजगार

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