Hindi, asked by sonudawar465, 2 months ago

नगरीकरण पर्यावरण को कैसे बिगड़ता है​

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Answered by Hero1234qw
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Answer:

शहरीकरण विकसित देषो की तुलना विकासषील देषांे के लिए ज्यादा घातक सिद्ध होती है। शहरीकरण अनेक समस्याओं को जन्म देती है जैसे आवास, गर्मी, गंदी बस्ती का निमार्ण जल आपुर्ति कि समस्या। धूल, कचरे का निपटारा, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण भीड़-भाड़ आदि

Answered by Anonymous
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नगरीकरण अर्थात शहरीकरण ।

शहरीकरण का एक कारण जनसंख्या की तीव्र वृद्धि एवं नगरों में नियोजन की अधिक संभावनाओं के कारण उनमें जनसंख्या का केन्द्रीकरण होता जा रहा है, साथ ही उद्योग, परिवहन आदि का भी वहाँ अत्यधिक प्रभाव होता है, फलस्वरूप पर्यावरण पर उसका विपरीत प्रभाव पड़ता है ।

वास्तव में ग्रामीण अंचल जहाँ शुद्ध पर्यावरण का प्रतीक है वहीं नगरीय या शहरीकरण के साथ पर्यावरण प्रदूषण जुड़ गया है जो पारिस्थितिक-संकट का कारण बनता है । प्रारंभ में नगर छोटे थे, उनका विस्तार सीमित था और वहाँ संपादित होने वाली आर्थिक क्रियाओं की संख्या सीमित थी जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण को किसी प्रकार का संकट नहीं था ।

किंतु कालांतर में नगरों का न केवल विकास अपितु अनियोजित विकास होने लगा तथा यहाँ प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी विकास के साथ ही उद्योगों का केन्द्रीकरण होना प्रारंभ हो गया । नगरों से महानगर विकसित हो गये, परिवहन के विविध साधनों का जाल इनमें फैल गया और आज विश्व के जो नगर जितने अधिक बड़े हैं उतने ही अधिक समस्याओं से ग्रसित हैं और ये समस्यायें दिन-प्रतिदिन गंभीर होती जा रही हैं । नगरीकरण के परिणामस्वरूप जिन प्रमुख पर्यावरणीय समस्याओं का उद्भव हुआ है ।

वे हैं:

(i) उद्योगों के केन्द्रीकरण से वायु प्रदूषण में वृद्धि,

(ii) औद्योगिक अपशिष्टों के निष्कासन से प्रदूषण,

(iii) वाहनों द्वारा छोड़े जाने वाले धुएँ का विषैला प्रभाव,

(iv) घरेलू कचरे एवं गंदे जल-मल निकास की समस्या एवं उससे प्रदूषण,

(v) नगरों में गंदी बस्तियों का विकास,

(vi) वाहनों, मशीनों एवं अन्य वाद्यों द्वारा शोर प्रदूषण में अत्यधिक वृद्धि एवं

(vii) नगरों के विस्तार के साथ-साथ कृषि भूमि एवं वन प्रदेशों का विनाश आदि ।

इनका प्रभाव एक ओर पारिस्थितिकी-तंत्र पर विपरीत रूप से हो रहा है तो दूसरी ओर यहाँ के निवासी टी.बी., अल्सर, कैंसर, सिरदर्द, उच्च रक्त चाप, हृदय एवं अन्य श्वास रोगों तथा अन्य प्राणघातक बीमारियों का शिकार होते जा रहे हैं ।

विश्व के महानगरों की समस्याओं का चित्रण संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट में इस प्रकार हल किया गया है- “हाल के दशकों में जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ शहरीकरण भी तीव्र हुआ है । विश्व के 80 प्रतिशत लोग शहरी क्षेत्रों में निवास करते हैं ।

यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो लगभग अर्द्ध शतक की अवधि में शहरीकरण अपनी चरम सीमा पर पहुँच जायेगा तथा अधिकांश लोग कस्बों और शहरों में रहने लगेंगे । विकासशील देशों में शहरीकरण की दर और भी तीव्र है । राष्ट्रीय आकलनों के अनुसार अमेरिका से इतर देशों में वर्ष 1920 में शहरी आबादी एक करोड़ थी । वर्ष 2000 तक यह 20 गुना हो गई ।

विकसित देशों में शहरी आबादी में चार गुना वृद्धि होगी ।— शहरी क्षेत्रों में जल, वायु तथा भूमि प्रदूषण की अभिवृद्धि की ऐसी विश्वव्यापी समस्या बन गई है जिससे मानव स्वास्थ्य को खतरा है । औषध विज्ञान में हुई प्रगति के बावजूद विकासशील देशों में शहरी जीवन से संबंधित बीमारियों में अभिवृद्धि हुई है ।—- नगरीय स्थलों की अति संकुलता सामान्य बात है ।

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