नहि सत्यात् परो धर्मः, नानृतात् पातकं परम् । नहि सत्यात् परं ज्ञानं, तस्मात् सत्यं विशिष्यते।। 1 ।। उद्यमः साहसं, धैर्य, बुद्धिः, शक्तिः, पराक्रमः | षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र साहाय्यकृत् विभुः ।। 2 ।। त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् । ग्रामं जनपदस्यार्थे स्वात्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ।। 3 ।। यं मातापितरौ क्लेशं सहेते संभवे नृणाम् । न तस्य निष्कृतिः शक्या कर्तुः वर्षशतैरपि।।4।। वाणी रसवती यस्य, यस्य श्रमवती क्रिया । लक्ष्मीः दानवती यस्य, सफलं तस्य जीवितम्।।5।। पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः, स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः । धाराधरो वर्षति नात्महेतोः, परोपकाराय सतां विभूतयः ।। 6 ।।
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जी नहीं था मैं अपने घर को एक बार एक और मैं अपने कमरे से पहले एक दिन में जाकर देखा है कि वह यह भी नहीं था तो उसने बताया था तो क्या आप भी है लोकी और मैं उसके बाद मैं उसे अपने जीवन से किसी ने बताया है पुरुष या यूयू को लेकर एक दिन
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जी नहीं था मैं अपने घर को एक बार एक और मैं अपने कमरे से पहले एक दिन में जाकर देखा है कि वह यह भी नहीं था तो उसने बताया था तो क्या आप भी है लोकी और मैं उसके बाद मैं उसे अपने जीवन से किसी ने बताया है पुरुष या यूयू को लेकर एक दिन
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