नकल रोकने का कानून क्या है?
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पिछले दिनों बोर्ड परीक्षा में नकल के मामले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तहलका मचा दिया. उससे जुड़े हर सवाल और चिंता वाजिब है कि आखिर कैसा होगा हमारा भविष्य. मूल सवाल है कि आखिर चोरी करनी ही क्यों पड़ती है? कहीं हमारी शिक्षा व्यवस्था में तो खामी नहीं है. इन्हीं सब बातों/ सवालों को हमने इस विशेष श्रृंखला नकल पर नकेल में समेटने का प्रयास किया है. इसी कड़ी में हमने राज्य के कुछ शिक्षाविदों से बात की. इनका मानना है कि इसे रोकने के लिए सख्त कानून होना जरूरी है, पर यह सवाल जितना व्यवस्था से जुड़ा है, उतना ही नैतिकता से भी. काफी हद तक आज की परीक्षा प्रणाली भी इसके लिए दोषी है, जिसमें बच्चे का ज्ञान आंकने से ज्यादा उसे कितने अंक मिले, यह महत्वपूर्ण माना जाता है. अभिभावक, शिक्षक व समाज हैं जिम्मेवार नकल के लिए हम शिक्षा प्रणाली को कहीं से दोषी या जिम्मेदार नहीं मानते हैं. इसके लिए बच्चों के अभिभावक, शिक्षक व जिस समाज में रह रहे हैं, वह जिम्मेवार हैं. बच्चों को आरंभ में ही संस्कार देना होगा. एक पिता यदि अपने बच्चे से कहे किसी भी हाल में वह नकल नहीं करे, भले ही वह फेल हो जाये. शिक्षक भी अपनी जिम्मेदारी के साथ बच्चे को सही शिक्षा व ज्ञान दे, तो इससे तकलीफ नहीं होगी. आज अभिभावक ही बच्चों को परीक्षा में नकल करवा रहे हैं. आरंभ काल में ज्ञान प्राप्त करने के लिए जंगल जाना पड़ता था. आज डिग्री प्राप्त करने के लिए नकल कर रहे हैं. चोरी का ही दूसरा रूप नकल है. शिक्षा प्रणाली में कई कड़े कानून हैं. कानून का पालन होना चाहिए. यदि परीक्षक सजग रहें, तो वह नकल होने पर कार्रवाई कर सकते हैं. सुरक्षा में लगे जवान व पुलिस अधिकारी कड़ाई करे, तो नकल पर रोक लग सकती है. यदि नकल हो भी गया, तो सभी परीक्षार्थियों को जीरो अंक दिया जाये. यानि जब तक सभी लोग अपने कर्तव्य का पालन नहीं करेंगे, तब तक सुधार नहीं आयेगा. आदमी को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा. पिता अपने बच्चों को बतायें कि सत्य बोलने से बड़ा तप नहीं है, झूठ बोलने से बड़ा पाप नहीं है. जो हृदय से सत्य है, उसी के हृदय में ईश्वर है.
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पिछले दिनों बोर्ड परीक्षा में नकल के मामले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तहलका मचा दिया. उससे जुड़े हर सवाल और चिंता वाजिब है कि आखिर कैसा होगा हमारा भविष्य. मूल सवाल है कि आखिर चोरी करनी ही क्यों पड़ती है? कहीं हमारी शिक्षा व्यवस्था में तो खामी नहीं है.