नमक का दरोगा कहानी
का मूल भाव क्या है
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कहानी की मूल संवेदना धर्म परायणता सत्यनिष्ठा तथा कर्तव्य निष्ठा की विजय तथा भ्रष्टाचार पर सदाचार की विजय को उजागर करना है | मनुष्य कितना भी सामर्थ युक्त क्यों ना हो किंतु सत्य निष्ठा और ईमानदारी जैसे अपराजित नैतिक मूल्यों के समक्ष पराजित हो ही जाता है ।
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कहानी आजादी से पहले की है। नमक का नया विभाग बना। विभाग में ऊपरी कमाई बहुत ज्यादा थी इसलिए सभी व्यक्ति इस विभाग में काम करने को उत्सुक थे। उस दौर में फारसी का बोलबाला था और उच्च ज्ञान के बजाय केवल फारसी की प्रेम की कथाएँ और शृंगार रस के काव्य पढ़कर ही लोग उच्च पदों पर पहुँच जाते थे। मुंशी वंशीधर ने भी फारसी पढ़ी और रोजगार की खोज में निकल पड़े। उनके घर की आर्थिक दशा खराब थी। उनके पिता ने घर से निकलते समय उन्हें बहुत समझाया, जिसका सार यह था कि ऐसी नौकरी करना जिसमें ऊपरी कमाई हो और आदमी तथा अवसर देखकर घूस जरूउर लेना।