नमस्कार दोस्तों !!!
जैसा की हम जानते है , आज आरक्षण पुरे देश में एक बहुत बड़ी मुद्दा बनी हुई है । इसलिए । मेरा प्रश्न भी उसी पे आधारित निम्लिखित है ।
आरक्षण को मुद्दा बनाते हुवे अपना तर्क दे अपना सुझाव दे क्या यह देश लिए अच्छा है तो कैसे और बुरा है तो कैसे ? क्या इससे देश को बांटने की भी कोसिस नही हो रहे ? कृपया अपना स्पष्ट रुख का वर्णन करे अपने देश , समाज के लिए ।
मैं एक मस्त उत्तर चाहता हु ☺। क्या आप दे सकते है अपना भाग्य आजमाए ।
आपको देर सारी शुभकामनये ।
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Hello Friend...
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आपका प्रश्न एक बड़ी विडंबना की ओर ध्यान आकर्षित करने वाला है। अतः इस प्रश्न पर मैं भी अपना उत्तर देना चाहूंगा।
आरक्षण लाने का सबसे बड़ा उद्देश्य था समाज में जाति के आधार पर पिछड़े लोगों को अतिरिक्त अवसर देकर उन्हें समाज के मुख्य धारा से जोड़ना। मुख्य धारा का अर्थ है सबको एक समान करके साथ चलना। जब ऐसी स्थिति थी तब निश्चय ही यह एक सराहनीय योजना थी।
परन्तु इसकी सबसे बड़ी विडंबना यह हैं कि शिक्षा जैसे क्षेत्र में योग्यता के आधार पर भी आरक्षण की व्यवस्था की गई। इसे एक उदाहरण से समझें - अगर कोई छात्र पिछड़े वर्ग से है और उसे किसी प्रतियोगिता में कम अंक प्राप्त हुएं हो जबकि दुसरी तरफ एक छात्र सामान्य वर्ग से हैं और उसे उसी प्रतियोगिता में अधिक अंक प्राप्त हुएं हो तो दोनों की तुलना में पिछड़े वर्ग के छात्र को उत्तीर्ण कर देना निराशाजनक है। ऐसा करने से मेधावी छात्रों का मनोबल बेहद कम होता जा रहा है और मेधावी छात्रों को उनके मेहनत के अनुकूल सफलता नहीं मिलती हैं। इसका व्यापक असर विभिन्न क्षेत्रों में देखने को मिलता हैं।
आरक्षण वह दीमक है जो हमारे देश को अंदर ही अंदर खोखला करती जा रही हैं।
मेरा मत - जातिगत आरक्षण तत्काल हटा देना चाहिए। आरक्षण का आधार जातिगत नहीं होना चाहिए। आरक्षण, किसी परिवार के आर्थिक स्थिति के आधार पर मिलनी चाहिए, तभी सब समान रूप से मुख्य धारा में जुड़ सकेंगे।
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Hope it will help you...
Best of luck...
Thanks !!!
Regards - Pratik Ratna ✌️✌️✌️
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आपका प्रश्न एक बड़ी विडंबना की ओर ध्यान आकर्षित करने वाला है। अतः इस प्रश्न पर मैं भी अपना उत्तर देना चाहूंगा।
आरक्षण लाने का सबसे बड़ा उद्देश्य था समाज में जाति के आधार पर पिछड़े लोगों को अतिरिक्त अवसर देकर उन्हें समाज के मुख्य धारा से जोड़ना। मुख्य धारा का अर्थ है सबको एक समान करके साथ चलना। जब ऐसी स्थिति थी तब निश्चय ही यह एक सराहनीय योजना थी।
परन्तु इसकी सबसे बड़ी विडंबना यह हैं कि शिक्षा जैसे क्षेत्र में योग्यता के आधार पर भी आरक्षण की व्यवस्था की गई। इसे एक उदाहरण से समझें - अगर कोई छात्र पिछड़े वर्ग से है और उसे किसी प्रतियोगिता में कम अंक प्राप्त हुएं हो जबकि दुसरी तरफ एक छात्र सामान्य वर्ग से हैं और उसे उसी प्रतियोगिता में अधिक अंक प्राप्त हुएं हो तो दोनों की तुलना में पिछड़े वर्ग के छात्र को उत्तीर्ण कर देना निराशाजनक है। ऐसा करने से मेधावी छात्रों का मनोबल बेहद कम होता जा रहा है और मेधावी छात्रों को उनके मेहनत के अनुकूल सफलता नहीं मिलती हैं। इसका व्यापक असर विभिन्न क्षेत्रों में देखने को मिलता हैं।
आरक्षण वह दीमक है जो हमारे देश को अंदर ही अंदर खोखला करती जा रही हैं।
मेरा मत - जातिगत आरक्षण तत्काल हटा देना चाहिए। आरक्षण का आधार जातिगत नहीं होना चाहिए। आरक्षण, किसी परिवार के आर्थिक स्थिति के आधार पर मिलनी चाहिए, तभी सब समान रूप से मुख्य धारा में जुड़ सकेंगे।
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