nar samaj ka Bhagya ek hai vah shram vah buj bal hai
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मानव समाज का एक ही भाग्य है वह हैं उसकी श्रम ओर भुजाओं की शक्ति|परिस्रामिव्यक्ति का जीवन बहोत सरल रहता हैं|उसकी सुविधाए सिमित रहते है मगर मन में प्रसन्नता बनी रहती हैं|सफलता का रास्ता परिश्रम हितो हैं|मानव परिश्रम से अपनी भाग्य रेखाको खुद बना सकता हैं|निरंतर श्रम से सफलता जरूर प्राप्त कर सकता हैं|परिश्रम ही सफालता का कुंजी हैं|जीवन के सारी इछाए सारी सुविधाए परिश्रम से ही प्राप्त हो सकते हैं|परिश्रम के सामने प्रकृति को भी झुकना पड़ता हैं|
प्रस्तुत प्रश्न कण कण का अधिकारी नामक कविता से लिया गया हैं|इस पाठ की विधा कविता हैं|कविता रसात्मक होती है|.डॉ रामधारी सिंह दिनकर हिंदी के प्रमुख कवी माने जाते है|इनका जन्म सन १९०८ में मुगेर में हुआ और मृत्यु सन १९७४ में हुआ|”उर्वशी” काव्य पर इनको ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला|रेणुका,कुरुक्षेत्र परसुराम की प्रतीक्षा आदि आदि इनकी प्रमुख रचनाए है| कवी ने इस कविता के माध्यम से मजदूरों के अधिकारों पर प्रकाश डाला हैं|
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