नरहरि चंचल है मति मेरी,
कैसे भगति करूं मैं तेरी।।
तूं मोहि देखै, हाँ तोहि देखू, प्रीति परस्पर होई।
तूं मोहि देखै, तोहि न देखू, यह मति सब बुधि खोई।।
सब घट अंतर रमसि निरंतर मैं देखन नहिं जाना।
गुनसब तोर, मोर सब औगुन, कृत उपकार न माना ।।
मैं, तैं, तोरि-मोरि असमझि सौं, कैसे करि निस्तारा ।
कह 'रैदासा' कृष्ण करुणामय ! जै जै जगत-अधारा ।
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#nice lines....
I really liked it
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