नरहरि चंचल मति मोरी कैसे भक्ति करूं मैं तेरी इसका अर्थ
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नरहरि चंचल मति मोरी कैसे भक्ति करूं मैं तेरी इसका अर्थ?
नरहरि चंचल मति मोरी कैसे भक्ति करूं मैं तेरी।
अर्थ : हे ईश्वर ! मैं तेरी भक्ति कैसे करूं? क्योंकि मेरा मन तो बड़ा चंचल हो रहा है तो मैं इसे नियंत्रित कैसे करूं?
भक्ति और ज्ञान के मार्ग पर चलने में मन बड़ी चंचलता बड़ी बाधा है, क्योंकि ध्यान लगाने के लिए मन चंचल मन को साधना पड़ता है। इसलिये भक्ति के मार्ग पर मन की चंचलता बाधा नहीं होकर भक्ति के मार्ग पर मन की चंचलता साधन बन जाती है क्योंकि मन की चंचलता ही भक्ति, ज्ञान और अज्ञान का भेद कराती है।
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