Hindi, asked by hiteshjuneja055, 6 months ago

नशा किस प्रकार एक सामाजिक समस्या बनता जा रहा है?​

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Answered by abhisheksingh20500
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नशा एक अभिशाप है। यह एक ऐसी बुराई है, जिससे इंसान का अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार हो जाता है। नशे के लिए समाज में शराब, गांजा, भांग, अफीम, जर्दा, गुटखा, तंबाकू व धूमपान, चरस, स्मैक, ब्राउन शूगर जैसे घातक मादक दवाओं व पदार्थो का उपयोग किया जा रहा है। इन पदार्थो के सेवन से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक व आर्थिक हानि पहुंचने के साथ सामाजिक वातावरण भी प्रदूषित होता है। साथ ही स्वयं व परिवार की सामाजिक स्थिति को भी नुकसान पहुंचता है। वह नशे से अपराध की ओर अग्रसर हो जाता है। नशा अब एक अंतरराष्ट्रीय विकराल समस्या बन गई है। बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्ग व विशेषकर युवा वर्ग बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। इस अभिशाप से समय रहते मुक्ति पाने में ही मानव समाज की भलाई है। दैनिक जागरण की ओर से नगर परिषद मंडी के सभागार में शनिवार को पाठक मंच के तहत समाज में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति पर चर्चा की गई। इसमें समाज के विभिन्न वर्गो के प्रबुद्ध नागरिक, साहित्यकार, सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि, पुलिस, न्यायविद शामिल हुए। पाठक मंच में मादक पदार्थो के बढ़ते प्रचलन को लेकर कुछ इस तरह की बातें भी सामने आई।

Answered by Anonymous
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Answer:

Explanation:

पश्चिमी सभ्यता ने हमारे देश, प्रदेश के युबाओं को किस तरह अपनी और आकर्षित किया है । इससे सभी भलीभांति परिचित हैं।  इसकी और देश के युवा सबसे अधिक आकर्षित होते हैं और अपनी भारतीय संस्कृति छोड़कर पाश्चात्य संस्कृति के पीछे भागते हैं। नशाखोरी भी इसी का उदाहरण है  भारत देश की  बड़ी मुख्य समस्याओं में से एक युबाओं  में फैलती नशाखोरी भी है । हिमाचल प्रदेश की जनसंख्या लगभग 70 लाख के पार हो चुकी है । इस जनसंख्या का एक बड़ा भाग युवाओं का है।  नशा एक ऐसी समस्या है , जिससे नशा करने वाले के साथ साथ उसका परिवार भी बर्बाद हो जाता है । और अगर परिवार बर्बाद होगा तो समाज नहीं रहेगा , समाज नहीं रहेगा तो देश और प्रदेश भी बिखरता चला जाएगा । इंसान को इस दलदल से  में एक कदम रखने की देरी होती है । यहां आपने यह कदम रखा फिर आप मजे से चलते चलते इसके आदि हो जाएंगे। और दलदल में धंसते चले जाएंगे । नशे का आदी इंसान चाहे तब भी इसे छोड़ नहीं पाता क्योंकि  उसे तलब पड़ जाती है। और फिर तलब ही  नशा और  बढ़ाती है । नशा नाश है। जीवन दो विपरीत ध्रुवों के बीच गतिमान रहता है । सुख और दुख लाभ और हानि जीवन और मृत्यु यह कभी अलग ना होने वाले दो किनारे हैं । सुख के समय में आनंद और उल्लास हंसी और कोलाहल जीवन में छा जाते हैं तो दुख में मनुष्य निराश होकर रुदन करता है। निराशा के कारण  ही मनुष्य दुख को भुलाने के लिए उन मादक द्रव्यों का सहारा लेता है । जो उसे दुखों की स्मृति से दूर भगा ले जाते हैं । यह मादक द्रव्य ही नशा कहे जाते हैं । मादक द्रव्य को लेने के लिए आज केवल असफलता और निराशा ही कारण नहीं बने हैं । अपितु रोमांच पाश्चात्य दुनिया की नकल और नशे के व्यापारियों की लालची प्रवृत्ति भी इसमें सहायक होती है । नशीले पदार्थ में मादक और उत्तेजक पदार्थ होते हैं। जिनका प्रयोग करने से व्यक्ति अपनी समृद्धि और संवेदनशीलता स्थाई रूप से खो देता है नशीले पदार्थ स्नायु तंत्र को प्रभावित करते हैं ।और इससे व्यक्ति उचित अनुचित भले बुरे की चेतना खो देता है। उसके अंग  शीथल हो जाते हैं । शरीर में कंपन होने लगता है, आंखें असामान्य हो जाती है नशा किए हुए व्यक्ति को सहजता से पहचाना जा सकता  है । इसीलिए इन नशीले पदार्थों में आज तमाकू भी माना जाता है। क्योंकि इससे शरीर पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है लेकिन विशेष रूप से जो नशा आज के युग में व्याप्त है उसमें चरस ,गांजा ,भांग, अफीम, स्मैक, हीरोइन ,चिट्टा, हशीश, कोरेक्स, मार्फिन,पैथाडीन , मेथाडोन,डाइजापाम, फेविकोल, आयोडेक्स बाम, बूट पालिश, जैसे  उल्लेखनीय है । शराब भी इसी प्रकार का जहर है जो आज भी सबसे अधिक प्रचलित है। शराब जैसे नशीले पदार्थ का प्रचलन तो समाज में बहुत पहले से ही था लेकिन आधुनिक युग में पाश्चात्य संस्कृति से नशे के नए रूप मिले हैं। और   हेरोइन और कोकीन जैसे संवेदन मादक पदार्थ के उदाहरण है। इसी  व्यवसाय के पीछे आज अनेक राष्ट्रों की सरकार का सीधा संबंध होता है ।

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