Hindi, asked by sanjaypawara03, 8 hours ago

नदी की आत्मकथा:- answer :---- पर्वत से निकल कर कल -कल ध्वनी करती मैं हिमालय की बेटी गंगा नदी हु| लोग मुझे अत्यंत पावन मानते है मेरा मेरा बचपन पर्वत के घणे जंगलो तथा हरी -भरी घाटियो मे बिता वही मे बडी हुई | नये - नये स्थान देखने का शौक मुझे मैदानो में ले आया | इस इस समय मेरा जल दर्पण समान स्वच्छ है | पर्वत से नीचे उतरकर मेरा विचार बडा परंतु मेरी गती धीमी हो गई| धीरे - धीरे समय बितता गया , मेरे किनारो पर गाव ओर नगर बस ने लगे | लोग मेरा जल पिने, खाणा बनाने, नहाने- धोने और खेती की शिचाई आदि विभिन्न कामो मे लाते है| पशु-पक्षी भी मुझसे ही जल प्राप्त करते है| समय समय के साथ- साथ मेरे किनारे पर अनेक परिवर्तन हुए| मेरे तटो पर घाट बनाए गये| नये- नये उद्योग विकसित होने लगे| मुझ पर बांध- बाधे गये मुझसे नहरे निकाले गये | लोगो का कल्याण मेरे जीवन का उद्देश है| परंतु जब कभी बहुत अधिक वर्षा होती है तब मुझे मे बाड आ जाती है | मेरे किनारे पर बसे हूए गाव ओर नगर, खेत, पशु सब बाढ मे बह जाते है | तब मुझे म्बहुत दुख होता है | परंतु प्रकृती के आगे मे विवश हू| मेरी जलधारा सदैव बहती रहती है | मी प्रत्येक जीव जंतू को सुखी बनाती हु | मैदानो को उपजाऊ बनाते है , लाखो लोग एकता का सूत्र बांधकर लगभग ढीड हजार किलोमीटर की यात्रा करके अंत मे सागर में विलीन हो जाती हु| ये मेरी आत्मकथा हैं| ♥️♥️♥️♥️♥️♥️​

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Answered by rohillarajesh
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Answer:

की आत्मकथा:- answer :---- पर्वत से निकल कर कल -कल ध्वनी करती मैं हिमालय की बेटी गंगा नदी हु| लोग मुझे अत्यंत पावन मानते है मेरा मेरा बचपन पर्वत के घणे जंगलो तथा हरी -भरी घाटियो मे बिता वही मे बडी हुई | नये - नये स्थान देखने का शौक मुझे मैदानो में ले आया | इस इस समय मेरा जल दर्पण समान स्वच्छ है | पर्वत से नीचे उतरकर मेरा विचार बडा परंतु मेरी गती धीमी हो गई| धीरे - धीरे समय बितता गया , मेरे किनारो पर गाव ओर नगर बस ने लगे | लोग मेरा जल पिने, खाणा बनाने, नहाने- धोने और खेती की शिचाई आदि विभिन्न कामो मे लाते है| पशु-पक्षी भी मुझसे ही जल प्राप्त करते है| समय समय के साथ- साथ मेरे किनारे पर अनेक परिवर्तन हुए| मेरे तटो पर घाट बनाए गये| नये- नये उद्योग विकसित होने लगे| मुझ पर बांध- बाधे गये मुझसे नहरे निकाले गये | लोगो का कल्याण मेरे जीवन का उद्देश है| परंतु जब कभी बहुत अधिक वर्षा होती है तब मुझे मे बाड आ जाती है | मेरे किनारे पर बसे हूए गाव ओर नगर, खेत, पशु सब बाढ मे बह जाते है | तब मुझे म्बहुत दुख होता है | परंतु प्रकृती के आगे मे विवश हू| मेरी जलधारा सदैव बहती रहती है | मी प्रत्येक जीव जंतू को सुखी बनाती हु | मैदानो को उपजाऊ बनाते है , लाखो लोग एकता का सूत्र बांधकर लगभग ढीड हजार किलोमीटर की यात्रा करके अंत मे सागर में विलीन हो जाती हु| ये मेरी आत्मकथा हैं| ♥️♥️♥️♥️♥️♥️

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